‘तीन मूर्ति’ भवन के नाम का इतिहास
दिल्ली में तीन मूर्ति भवन स्थित है, जो कभी पंडित नेहरु का सरकारी आवास था, जो आज नेहरु स्मारक संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। उसके समक्ष गोलचक्कर पर तीन मूर्तियां है, उनका भारत और इजरायल के इतिहास से बहुत ही गहरा संबंध है। प्रथम विश्वयुद्ध के समय, भारत के तीन रियासत मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया। हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया और केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया। अंग्रेज सेनापति को सूचना मिली कि शत्रु अत्याधुनिक हथियारों से लैस है, जबकि रियासती सैनिक भाला-तलवार लिए घोड़े पर सवार। तो उसने हमला रोकने का आदेश दिया। किंतु स्वाभिमानी सैनिकों ने भारतीय परंपरा का हवाला देते हुए आदेश को नहीं माना और कहा, बढ़ते हुए कदम को रोकने पर वह भारत लौटकर अपने महाराजा और देशवासियों को क्या मुंह दिखाएंगे? भारतीय रणबांकुरे बिजली की तेजी की तरह शत्रुओं पर टूट पड़े। इधर तलवार-भाले और उधर गोलियों की बौछार। किंतु भारतीय सैनिक हताहत होने की चिंता किए बिना आगे बढ़ते गए और लगभग 900 सैनिकों के बलिदान के बाद विजय प्राप्त की। यह युद्ध 22-23 सितंबर 1918 को लड़ा गया था, जो इतिहास में हाइफा युद्ध के नाम से विख्यात है। हाइफा इजरायल का पहला स्वतंत्र हिस्सा है और यह भारतीय सैनिकों के शौर्य व बलिदान का प्रतीक है।भारतीय हमले का नेतृत्व करने वाले जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत को हाइफा के नायक के रुप में जाना जाता है।