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संयुक्त प्रयासों और जन भागीदारी से होगा रिस्पना का पुनर्जीवन : मैड

MAD

देहरादून | ईको टास्क फोर्स के संग मिलकर रिस्पना के पुनर्जीवन पर काम कर रहा देहरादून का शिक्षित छात्रों का संगठन, मेकिंग अ डिफरेंस बाई बींइग द डिफरेंस अपनी ओर से रिस्पना पुनर्जीवन पर जन भागीदारी बढ़ाने हेतु हर संभव कदम उठा रहा है । इसी कडी में मैड द्वारा पद्म श्री चडीं प्रसाद भट्ट जी से उनके गोपेश्वर स्थित आवास में मुलाकात की गुजारिश की गई और मैड की भट्ट जी के साथ यह मुलाकात दो घंटे चली। इस मुलाकात में संस्था ने रिस्पना पुनर्जीवन के लिए उनका समर्थन लिया। उनके कई दशकों के अनुभव से भी मैड ने कई चीजें सीखी और इस बात का सार लेकर देहरादून वापस लौटे कि सरकार के साथ मिलकर ही इतने बडे स्तर का अभियान चलाया जा सकता है। इसके पश्चात मैड संस्था ने ॠशिकेश स्थित परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद मुनि जी से भेंट की और उनसे रिस्पना पुनर्जीवन पर उनकी राय समझी। मुनि जी ने एक ग्रैंड प्लान और एक ग्राउंड प्लान की बात कही और दोनों में मैड संस्था को जन भागीदारी एवं युवाओं लको साथ लेने की पहल करने का सुझाव दिया । मैड ने उत्तराखंड वैज्ञानिक एवं अनुसंधान संस्थान के प्रोफेसर दुर्गेश पंत एवं डॉ सुंदरियाल समेत संस्थान के कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर तीन घंटे तक इस बात पर गहन चर्चा करी कि कैसे नदी का पुनर्जीवन किया जा सकता है । इस तीन घंटे के चर्चा में सबसे ज्वलंत मुद्दा यही था कि नदी का बहाव कैसे बढ़ाया जा सकता है और जलविज्ञान की कैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। मैड ने इस मुद्दे को देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल में भी उठाया और वहां भी इस बात पर चर्चा की गयी कि कौनसी जगहों पर वृक्षारोपण एवं पौधारोपण किया जा सकता है और किस तरीके के वृक्ष एवं पौधे लगाये जा सकते हैं जिनसे जल संवर्धन बढे। इस सबके अलावा मैड संस्था न सिर्फ इको टास्क फ़ोर्स से लगभग हर दिन बैठक और विचार विमर्श कर रही है कि रिस्पना का पुनर्जीवन किस तरीके से किया जा सकता है बल्कि उसके साथ साथ हर कुछ दिनों में संस्था द्वारा यह भी प्रयास किया जा रहा है कि वह रिस्पना के उद्गम स्थल से कूड़े कचरे की सफाई करें एवं नदी के बारे में और जानकारी खुद नदी में चलकर इकठ्ठा कर सकें जो इको टास्क फ़ोर्सइ एवं सरकारी संस्थानों को प्रेषित की जा सके। मैड उम्मीद करता है कि जान भागीदारी और सरकारी संवेदनशीलता के साथ रिस्पना पुनर्जीवन देहरादून के इतिहास में एक नवीन उदाहरण के तौर पर पूरे देश के सामने प्रस्तुत होगा।

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