सहारनपुर दंगाः फूलन देवी हत्या आरोपी शेर सिंह राणा भी हवा देने में पीछे नहीं
सहारनपुर। सहारनपुर के गांव शब्बीरपुर में भड़की ठाकुर-दलित टकराव की आग भले ही ठंडी पड़ती दिख रही हो, लेकिन इसने कई सवाल खड़े किए हैं और यदि इनके जवाब न ढूंढ़े गए तो फिर आग भड़कने की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। यह तो जरूरी है ही कि प्रशासन अपनी गलतियों से सबक ले, लेकिन उन किरदारों को भी चिन्हित करना होगा जिनकी दिलचस्पी अचानक ही क्षेत्र में बढ़ी है और पूरे मामले में जिन्होंने अचानक ही उभार लिया है। सहारनपुर की जनता जानती है कि जातीय विद्वेष फैलाने में भीम आर्मी की मुहिम ही नहीं वरन उत्तराखंड के विवादित नेता शेर सिंह राणा जैसे लोग भी आग को हवा देने में पीछे न थे। इसके अलावा सोशल मीडिया ने भी शोले भड़काने में अहम भूमिका निभाई। प्रश्न यह कि दोनों पक्षों से भड़काऊ कार्यक्रमों में भागीदारी व सोशल मीडिया पर समर्थन करने वाले कौन हैं? दरअसल शब्बीरपुर हिंसा की जमीन काफी पहले से तैयार हो रही थी जिसमें दो लोगों की मौत और एक दर्जन से अधिक घायल हुए। दर्जनों घरों में आगजनी व लूटपाट हुई। इसके लिए बाहरी तत्वों को भले ही जिम्मेदार ठहराया जाए परंतु सवाल यह है कि उनका साथ किसने दिया? आखिर वो कौन लोग है जो भीम आर्मी का समर्थन करते रहे हैं। सहारनपुर में देवबंद क्षेत्र ठाकुर राजनीति का गढ़ रहा है और यहां वर्चस्व की लड़ाई क्षत्रिय नेताओं में बनी रहती है। यहां गांव शिमलाना में राणा प्रताप जंयती समारोह में शेरसिंह राणा को हिंदू हृदय सम्राट प्रचारित कर मुख्य अतिथि बनाया गया। यह वही शेरसिंह राणा है, जो पूर्व सांसद फूलन देवी की हत्या के आरोप में उम्रकैद सजा काट रहा है और गत दिनों जमानत पर बाहर आया है। एडवोकेट रामकुमार का कहना है कि जब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है तो दूसरे पक्ष को आजादी क्यों दी गई। ऐसे दोहरे मापदंड से भी तनाव बढ़ता है।