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हरेला के महत्व पर मुख्यमंत्री ने लिखा ब्लॉग

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देहरादून | मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने ब्लॉग में पर्यावरण संरक्षण में उत्तराखण्ड के लोक पर्व ‘हरेला’ के महत्व को दर्शाते हुए कहा है कि दुनिया में हरेला शायद ऐसा एकमात्र त्योहार होगा जिसमें जीवों के कल्याण के साथ साथ प्रकृति संरक्षण की कामना भी की जाती है। पेड़ लगाने और पर्यावरण बचाने की संस्कृति की ऐसी सुंदर झलक देवभूमि उत्तराखंड में ही दिखती है। हरेला पर्व हमारी लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह पूरे उत्तराखंड में, विशेषतौर पर कुमायूं क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ के लोग प्रकृति के बेहद नजदीक हैं। प्रकृति को अपनी दिनचर्या, तीज त्यौहार, और संस्कृति में समाहित करते हैं। हरेला हमारी लोकपरम्परा से जुड़ा पर्व है। हरेला सावन लगने से 9 दिन पहले बोया जाता है। मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, फसल भी उतनी ही अच्छी होगी, इसलिए हरेले को किसानों की सुख समृद्धि की कामना के तौर पर भी देखा जाता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वर्मिंग की समस्या से आज दुनिया भर के देश चिंतित हैं। इनके असर को रोकने के लिए सभी जरूरी प्रयास तलाशे जा रहे हैं। ये प्रयास प्रकृति और पय़ार्वरण संरक्षण के बिना संभव नहीं हो सकते। इसलिए अगर हरेला पर्व के संदेश पर बारीकी से गौर करें तो इन समस्याओं का हल मिल जाता है। उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला पूरी दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ने का संदेश देता है। मुख्यमंत्री ने अपने ब्लॉग में कहा कि हरेला सुख-समृद्धि व जागरूकता का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने वृक्षों को बचाने के लिए अनवरत प्रयास किये और हमारी पीढ़ी को स्वस्थ सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने मे सहयोग किया। इसी तरह आने वाली पीढ़ी को अच्छा पर्यावरण देने के लिए हमें भी संकल्प लेना होगा। हरेला के अवसर पर इस बार प्रदेश भर में वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जा रहा है। इस बार हरेला पर्व पर 6.25 लाख पौधे लगाये जा रहे हैं। समाज क सभी वर्ग, बच्चे, बुजुर्ग, युवा, महिलाएं, छात्र, किसान, कामगार, सभी प्रकृति के करीब ले जाने वाले हरेला त्योहार की इस खास मुहिम से जुड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि जिस तरह स्वच्छता को एक जन आंदोलन का रूप दिया गया, उसी तरह जल संरक्षण के लिए जन आंदोलन की शुरुआत हो। जीने के लिए स्वच्छ प्राणवायु और पीने के साफ पानी, इन दोनो के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए हरेला के अवसर पर हम सभी संकल्प ले सकते हैं कि हम अपने ससाधनों के रखरखाव की जिम्मेदारी लेंगे। पिछले वर्ष जल संरक्षण की दिशा में हमने कई प्रयास किए जिस कारण से 2018-19 में 33.4 करोड़ लीटर जल संचय करने में सफलता हासिल की। इस दौरान 11221 चाल खालों का निर्माण, 2824 जलकुंडों का निर्माण, 500 चैकडैम और 4.2 लाख कंटूर ट्रैंच बनाए गए। इन सभी प्रयासों से पानी बचाने में सफल रहे। हरेला हमें एक अवसर देता है कि हम प्रकृति को करीब से जानें, जिस प्रकृति में हम पले बढ़े हैं उसका कर्ज चुकाने की छोटी छोटी कोशिशें करें। इस वर्ष हरेला पर हम सभी का ये उद्देश्य होन चाहिए कि कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएंगे, साथ ही चाल खाल या अन्य तरीकों से एक एक बूंद पानी की बचाएंगे। हमारे आज के प्रयास हमारी कल की पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होंगे।
जी रयां जागि रयां
आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जयां
स्यावै जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जयां

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