आधार हुआ निराधार….
वर्तमान में यह प्रतीत होने लगा है कि भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट के दोस्ताने में कमी आ रही है। जैसा कि आईपीसी की धारा 377 में भी दिखाई दिया और अब आधार कार्ड भी फिफ्टी-फिफ्टी हो गया है। कम से कम इतना जरूर है कि आधार कार्ड को पांचाली का दर्जा नहीं मिल पाया। लेकिन आम आदमी की भी तो सोच लिया करे सरकार। बस… भगाते रहो, दौड़ाते रहो, लाईन में लगाते रहो। कुछ ही दिन पहले की बात है कि आधार कार्ड की योजना को क्रियान्वित किया गया और हर आदमी को पी.टी. ऊषा बनाकर रख दिया। सभी लोग लगे हुये हैं भागदौड़ में, कोई नगर निगम जा रहा है तो कोई कचहरी की बाट जोह रहा है। क्योंकि आधार कार्ड बनना जो जरूरी है, नहीं तो जैसे कि पहाड़ टूटने वाला हो। लोगों कि यह भागदौड़ देखकर तो ऐसा लगा कि जैसे सिनेमाघरों में ‘शोले’ मूवी लगी हो और देखना जरूरी हो। लेकिन सरकार ने तो आधार कार्ड को ही गब्बर बनाकर छोड़ दिया। पहले आधार कार्ड के लिए सभी को दौड़ा-दौड़ाकर पसीने से तर-बतर कर दिया। फिर क्या था, आदमी घर पर बैठा ही था तो सरकार को रास न आया और नया आॅर्डर दे दिया कि ‘जाओ, अपने खाते और सिलेण्डर को आधार से लिंक कराओ, सब्सिडी भी मिलेगी।’ क्या करते लोग…? घर के मुखिया का आदेश था, मानना तो पड़ेगा ही। सभी फिर लग गये सभी लोग भागदौड़ में और बैंकों नोटबंदी के बाद फिर से लगने लगी लाईनें। अब सभी लोगों ने खाते आधार से लिंक करवाये और चैन की सांस लेने लगे। अब बात करें सब्सिडी की तो यह तो वही बात गयी कि ‘‘रेगिस्तान में कब बारिश हो जाय।’’ सब्सिडी के लिए यह भी कहा जा सकता है कि ‘‘सब्सिडी चायना का माल है।’’ कहने का तात्पर्य गैस से मिलने वाली सब्सिडी खातों में आती या नहीं आती है, यह तो राम जाने। क्योंकि देखने में आया है कि औषतन 100 में 25-30 लोगों के खाते में ही सब्सिडी आई। बनालो हमारा आधार, करलो खातों में लिंक आधार, सब्सिडी भी दे देगा आधार। जब आधार को ही सुप्रीम कोर्ट 50 प्रतिशत निराधार करके रख दिया तो कहां गया आधार। बहरहाल, खुशी की बात तो है कि अब सबका आधार भी बन गया और खाते भी आधार से लिंक हो गये। हर इनसान अब खुश है और भागदौड़ भी खतम हो गयी है। लेकिन अभी थोड़ी इतिहास खतम हुआ है, क्योंकि अभी कुतुबमीनार पूरी थोड़ी हुयी है, इल्तुतमिश का आना बाकी है। सुबह से शाम हुयी नहीं कि सारी मोबाईल कम्पनियां आ गयी इल्तुतमिश बनकर। अब फिर दिक्कतें सामने आ गयी कि मोबाईल को आधार से लिंक करें, नहीं तो आपका नम्बर बंद हो जाएगा। आम आदमी की फिर हो गयी भागदौड़ शुरू और लग गये मोबाईल से आधार लिंक करवाने में। इतना जरूर है कि सरकार और आधार ने पढ़े-लिखे आदमी को अंगूठा छाप बनाकर रख दिया। कराते रहो आधार लिंक और लगाते रहो अंगूठा। खैर, समझ में सिर्फ यह नहीं आ रहा है कि आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट अपने अनोखे फैसलों से बसंत के फूल खिलाने में लगा हुआ है। क्योंकि पहले क्या हुआ, अब क्या हो रहा और आगे क्या होगा…. कुछ पता नहीं। पहले एडमिशन करवाना, सरकारी योजनाओं को लाभ लेना, इनकम टैक्स रिटर्न भरना, सिम लेना, खाता खुलवाना और कोई भी काम करना हो तो सबको आधार की छाया में डाल दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट की धारा 57 रद्द कर दी। जब पेड़ काटना ही है तो पौंधा क्यों लगा रहे हो। बहरहाल, इतना जरूर है कि सरकार हो या न्यायपालिका, इनके फैसले जनहित में ही होते हैं। लेकिन क्या ये समझदारी है कि पहले सरकार ने एक कार्ड के लिए सभी को ओलंपिक का रनर बनाकर रख दिया और आसामन को आधार के घेरे में डाल दिया। लेकिन न्यायपालिका का फैसला कहता है कि ‘‘अब आसमान साफ है।’’ खैर…! पहले क्या हुआ और अब क्या हो रहा है, यह तो सभी को पता है लेकिन आगे क्या होगा, बस इसी का इंतजार है।
– राज शेखर भट्ट ( सम्पादक )