कानून की नजर में ‘वैवाहिक बलात्कार’ अपराध नहीं
भारत में ‘वैवाहिक बलात्कार’ कानून की नजर में अपराध नहीं है. यानी अगर पति अपनी पत्नी की मर्जी के बगैर उससे जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जाता। केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में ‘मैरिटल रेप’ को ‘अपराध करार देने के लिए’ दायर की गई याचिका के खिलाफ कहा कि इससे ‘विवाह की संस्था अस्थिर’ हो सकती है। दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा, “मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता है और ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है. पतियों को सताने के लिए ये एक आसान औजार हो सकता है.” ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि ‘रेप’ और ‘मैरिटल रेप’ में क्या फर्क है और विवाह की संस्था का इससे क्या संबंध है? क्या है रेप आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ अगर इन छह परिस्थितियों में यौन संभोग करता है तो कहा जाएगा कि रेप किया गया। आईपीसी या भारतीय दंड विधान रेप की परिभाषा तो तय करता है लेकिन उसमें वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं है। धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करता है और आईपीसी की इस पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है बर्शते पत्नी 12 साल से कम की हो। इसमें कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति अगर बलात्कार करता है तो उस पर जुर्माना या उसे दो साल तक की कैद या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं. 375 और 376 के प्रावधानों से ये समझा जा सकता है कि सेक्स करने के लिए सहमति देने की उम्र तो 16 है लेकिन 12 साल से बड़ी उम्र की पत्नी की सहमति या असहमति का कोई मूल्य नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम पति और पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति कुछ जिम्मेदारियां तय करता है. इनमें सहवास का अधिकार भी शामिल है। कानूनन ये माना गया है कि सेक्स के लिए इनकार करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है। घर की चारदीवारी के भीतर महिलाओं के यौन शोषण के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कघनून लाया गया था.ये कघनून महिलाओं घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है. इसमें घर के भीतर यौन शोषण को परिभाषित किया गया है।