जब मिटाए तूने जंगल….
जब मिटाए तूने जंगल,
फिर कैसे होगा तेरा मंगल.
तेरे लिए वन्य जीवन की कीमत हुई सस्ती,
अब क्यूं रो रहा जब जानवर मिटा रहे तेरी बस्ती.
उनका घर छीन बन रहा था तू दंगल,
फिर क्यूं चाहता है हो खुद का मंगल.
अब क्यूं बोलता है तेंदुआ खूंखार है,
क्या तूने उसपर कम ढाए अत्याचार है.
जंगल खत्म कर तूने इनका परिवार उजाड़ा है,
तूने धरा का जैव-विविधता बिगाड़ा है.
तूने शिकार कर चलाया इन पर जोर,
क्यूं न आऐंगे ये बस्ती की ओर.
छुपा तेंदुआ तुझे लग रहा वहशी चोर
अब न चलेगा तेरा कोई जोर,
चाहे मचाले तू कितना ही शोर.
इसकी आंख में है बदले की आग,जान बचाने को अपनी तू भाग.
मानव तेरी सभ्यता का होगा नाश,
ये मौत के दूत आज करेंगे तेरा विनाश.
– हिना आज़मी(साईं इंस्टीट्यूट)”मास कम्युनिकेशम “