पहाड़ी संस्कृति पर काम कर रहे क्वीला गांव के मैठाणी
तीन हजार से अधिक मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं मैठाणी
रुद्रप्रयाग। जानेमान नाराज ह्वैगी और गुड्डू का बाबा गाने से प्रसिद्ध हुए गढ़वाली गायक सौरभ मैठाणी युवा दिलों में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए हैं। कम उम्र में ही उन्होंने अपनी गायिका का जादू बिखेरा है। उनका प्रयास है कि गढ़वाली लोक गीतों से उत्तराखण्ड को पहचान मिले और देश-विदेश में प्रदेश का नाम रोशन हो सके। मूलतः जिले के भरदार पट्टी अन्तर्गत क्वीला गांव निवासी सौरभ मैठाणी की जिज्ञासा बचपन से ही संगीत के प्रति रही। उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ ही संगीत की शिक्षा भी ली और छोटी सी उम्र से ही अपनी एलबम भी निकालनी शुरू की। पहले उन्होंने भजनों से अपनी पारी की शुरूआत की, जिसमें उन्हें कुछ हद तक सफलता मिली। उन्होंने बौ सरेला, मां ऊंचा पहाड़ा मा, मिजाज्य तेरू मिजाज, मेरी मां मठियाणा, खोट्यूं मां झांवरी, उत्तराखण्ड आ जरा, भाना, तेरी सेल्फियां सहित कई गाने गाये, जिन्हें दर्शकों की ओर से काफी सराहना मिली। मगर हाल ही में उनके दो गानों लगदू फिर से जानेमान नाराज ह्वैगी और गुड्डू का बाबा ने उन्हें चर्चाओं में ला दिया। दर्शकों की ओर से उनके इन गानों को बेहद पसंद किया जा रहा है। हेमा नेगी करासी के चैनल से निकाला गया उनका गुड्डू का बाबा गीत को 12 लाख 52 हजार व्यूअर्स मिले हैं, जबकि जानेमन नाराज ह्वैगी गाने को सात लाख से ज्यादा व्यूअर्स मिल चुके हैं। उनकी नयी एलबम जल्द ही दर्शकों के बीच आने वाली है। राष्ट्रीय सहारा से एक मुलाकात में लोक गायक सौरभ मैठाणी ने कहा कि संगीत के प्रति उनका लगाव बचपन से रहा है। शिक्षा के साथ ही संगीत का भी ज्ञान लिया और आज देहरादून में संगीत की क्लाश खोली गई है। उन्होंने बताया कि प्रारंभिक शिक्षा गांव में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए देहरादून चले गये और डीएवी पीजी काॅलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। संगीत की शिक्षा शास्त्रीय गायन विशारद भारखण्डे संगीत यूनिवर्सिटी से प्राप्त की। बताया कि स्कूल के दिनों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान लोकगीत प्रतियोगिता में भागीदारी ली और 28 स्कूलों में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त किया। संगीत की शिक्षा मुरलीधर जगूड़ी और वाहिनी से लेने के बाद अब तक तीन हजार से अधिक मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। सौरभ मैठाणी दुबई में अपनी संस्कृतिक, संस्कारों की प्रस्तुति दे चुके हैं और चार बार यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा राष्ट्रपति के समक्ष भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। संस्कृत विभाग की ओर से ए ग्रेड का सार्टिफिकेट दिया गया है। उन्होंने कहा कि पहाड़ की संस्कृति और परम्परा को जीवित रखने के लिए गढ़वाली भाषा को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। गढ़वाली लोक गीतों के जरिये देश-विदेश में उत्तराखण्ड की पहचान को और अधिक मतबूत बनाने की कोशिश की जा रही हैं। यहां के पर्यटन और तीर्थाटन को गीतों के माध्यम से लोगों तक पुहंचाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार को भी लोक गायकों की मदद करनी चाहिए। उन्हें ऐसा मंच प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे वे अपने कार्य को आसानी से कर सकें। लोक गायकों की आर्थिक मदद की जानी चाहिए।