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व्यंग्यः कितना दर्द दिया मीटू के टीटू ने…..!

metoo

कितना सच्चा है मेरा मीटू और कितना दर्द दिया मुझे मीटू के टीटू ने। किसी को क्या पता था कि आज से 5 साल पहले, 10 साल पहले या 20 साल पहले मेरे साथ क्या हुआ, जो मुझे मीटू का दामन थामना पड़ा। जरूरी तो नहीं है कि 20 साल पहले किया गया उत्पीड़न वर्तमान में सामने लाया जाय। उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति का व्यवहार, विचार, चरित्र और चाल-चलन 20 साल पहले कैसा था और अब कैसा है। सोचने की बात यह भी है कि मीटू की बात करने वाली 20 साल पहले कैसी थी और अब कैसी है। क्या इसका प्रमाण सत्यापन के साथ मिल सकता है। बातें तो ऐसी-ऐसी करते हैं कि समझ नहीं आता कि ऐसा क्या है और वैसा क्या है। जब इतने सालों पहले उत्पीड़न हुआ था तो आज तक जुबान बंद क्यों थी और अब एक भेड़ चलने लगी तो मीटू-मीटू कहते हुये सब पीछे-पीछे चल दिये। एक ने आरोप लगाने शुरू क्या किया तो सबके दिमाग में एक ही ख्याल था कि ‘‘मैं अपने मीटू से किसको पीटू।’’ कहीं ऐसा तो नहीं है कि अब मीटू के जरिये अपने बुढ़ापे को संवारा जा रहा हो या खुन्नस कुछ अलग हो और तरीका मीटू का अपनाया जा रहा हो। यह भी हो सकता है कि सरकार द्वारा ही ये चुनावी हुकुम का इक्का फैंका गया हो। जैसा कि 497 को खतम करके, आने वाले समय में एक नयी धारा मीटू 597 बनाकर लोगों के सामने रख दिया जाय। हे भगवान, कोई पीछे से पकड़ रहा है तो कोई कान काट रहा है। कोई प्यार भरे डॉयलॉग मार रहा है तो कोई बिस्तर पर इंटरव्यू ले रहा है। कोई स्ट्रिप खींच रहा है तो मानसिक प्रताड़ना दे रहा है। जब इतना सब कुछ हो रहा था तो तब कहां था ये मीटू। अब रही बात कि महिला हैं, पहले आरोप लगातीं तो दुनियां में मुंह कैसे दिखाती, जमाना क्या कहता या बदनामी मिलती। लेकिन मीटू के साथ आरोप लगाते हुये यह बातें सामने नहीं आईं। यहीं देखा जाय तो 15-20 साल पहले हुआ स्वीटू और अब सामने आया मीटू। हम यह भी नहीं कह सकते है कि मीटू गलत है या टीटू गलत है। लेकिन जांच और सुबूतों से सब कुछ साफ हो जाएगा और मुलजिम-मुजरिम भी अलग हो जाएंगे। यूं भी कहा जा सकता है कि मीटू का टीटू अलग है या खुद मीटू ही टीटू है। इतना मीटू-मीटू चिल्लाने वालों को अपनी सोच को थोड़ा विस्तार देने की आवश्यकता भी है। क्योंकि सालों पुरानी स्थितियों को तो मीटू की छांव दे दी लेकिन वर्तमान के टीटूओं को भी तो देखो। रोजमर्रा की खबरों के अनुसार देखा गया है कि हमारे देश में कभी कहीं 6 साल की बच्ची के साथ शारीरिक उत्पीड़न हो रहा है तो कहीं 10 साल की बच्ची का बलात्कार। सीधा-सीधा मुद्दा है कि अपने बुढ़ापे को तो संवारा जा रहा है और पुराने उत्पीड़न के लिए तो मीटू है लेकिन टीटू जो वर्तमान में कर रहा है, उसके लिए मीटू क्यों नहीं आ रहा सामने। बहरहाल, न सभी पुरूषों को गलत सोच सकते हैं और नहीं सभी महिलाओं को। लेकिन जब तक वास्तविकता से सामना न हो और सच और झूठ का ज्ञान न हो तो न टीटू सही है और न ही मीटू। क्योंकि जो मीटू पैंसे के लिए सड़क के किनारे, चौकों और अपने ठिकानों में हैं, उनको दी गयी श्रेणी को क्या जाएगा… टीटू, मीटू या कुछ और टू।

राज शेखर भट्ट (सम्पादक )
देहरादून

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