“स्पेशल बच्चों” का जीवन संवार रही है मणि , जानिये खबर
फरीदाबाद | दिल में जज्बा हो तो कोई भी अच्छे कार्य किया जा सकता है इसी जज्बे को लेकर स्पेशल बच्चों को स्पेशल बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए मणि ने स्कूल शुरू किया। यही नहीं इसके लिए वह खुद पढ़ाई भी की। आर्थिक दिक्कतों व अन्य मुश्किलों से जूझते हुए अपने मिशन को पूरा करने में जुटीं मणी इन बच्चों के लिए उनकी प्यारी बड़ी मैम हैं। मणि की कोशिशों से कई स्पेशल बच्चों का जीवन संवर गया है। विभोर खुद से कुछ नहीं कर पाता था, पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर था। लेकिन आज वह 60 प्रतिशत तक आत्मनिर्भर हो चुका है। टेलिग्राफिक लैंग्वेज के जरिए बात कर सकता है। शानदार पेंटिंग बनाने लगा है। खूबसूरत बंधनवार व राखी भी बना लेता है। 5 साल का आर्यन एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिव डिसॉर्डर) का शिकार था। 3 साल की ट्रेनिंग के बाद आज वह मानव रचना में तीसरी क्लास में पढ़ रहा है। 17 साल का ब्रैन जूड पहले न ठीक से अपनी बात कह पाता था, न कुछ समझ पता था, लेकिन अब वह न लिखने व अपनी बातें शेयर लगा है, बल्कि 2011 में स्पेशल ओलिंपिक भारत की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता। 2017 में भी उसने इसी आयोजन में नेटबॉल में गोल्ड हासिल किया। मणि ने कहा की स्पेशल बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर आज भी न तो हमारा समाज जागरूक है और न ही उनके लिए अच्छी सुविधाएं मौजूद हैं जिससे इन बच्चों व पैरंट्स को परेशानियों से जूझना पड़ता है। बल्लभगढ़ स्थित सेक्टर-3 निवासी मणी अग्रवाल को जब अपने बेटे की परवरिश में ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने शहर के ऐसे दूसरे बच्चों की जिंदगी संवारने का बीड़ा उठा लिया। मणि ने वर्ष 2004 में इंटेलेक्चुअल डिसेबल बच्चों के लिए सेक्टर 10 में ‘आकृति’ स्कूल की नींव रखी। यह स्कूल शिक्षा के माध्यम से बच्चों के जीवन में नई ज्योति जला रहा है। शुरुआत में स्कूल में दो बच्चे थे, जिसमें एक मणी का अपना बेटा भी शामिल रहा। मणी बताती हैं कि ऐसे बच्चों की देखरेख निश्चित तौर पर कठिन काम है, लेकिन शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जिसके माध्यम से प्यार, समझ व धैर्य के साथ इनका जीवन संवारा जा सकता है। तमाम आर्थिक उतार-चढ़ाव के चलते 3-3 साल में इस स्कूल की जगह बदली और अब पिछले चार साल से यह स्कूल विशंभर प्लेस, तिगांव रोड, बल्लभगढ़ में आबाद है।