कला और सांस्कृतिक महोत्सव विरासत का रंगारंग कार्यक्रमों के साथ हुआ समापन
देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल के 15वें दिन एवं समापन कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार कि प्रस्तुतियां हुई। विरासत 2022 के समापन समारोह पर बोलते हुए, आरके सिंह- संस्थापक और महासचिव, ’रीच’ ने कहा, “विरासत 2022 के लिए हमें देश भर के नागरिकों से जो समर्थन मिला है, वह हमारी अपेक्षाओं से अधिक है। हर गुजरते साल के साथ हमारा उत्साह और रोमांच बढ़ता जा रहा है। देश के कई क्षेत्रों को सुशोभित करने वाली पारंपरिक कलाकृतियां और सांस्कृतिक खजाने को पेश करने और बढ़ावा देने की दिशा में काम करने का हमारा निरंतर प्रयास होगा।
हम आपको विरासत 2023 के बारे में भी बताना चाहते हैं, जो नवरात्रि और दिवाली समारोह के आसपास शुरू होगा और इसे हमेशा की तरह हम सफल बनाएगें। हम आपको मंत्रमुग्ध करने और आपको एक और अविस्मरणीय संगीत और सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाने का संकल्प लेते हैं। हम इस अवसर पर विरासत की पूरी टीम, मीडिया मित्रों और हमारे सहयोगी कलाकार, हमारी टीम एवं समस्त साझेदार को इस आयोजन को सफल बनाने में मदद करने के लिए धन्यवाद देता हुं और हम और भी अधिक रोमांचक सफर पर आप सभी को ले जाने के लिए विरासत 2023 की आशा करते हैं। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति जौनसार बावर क्षेत्र के सांस्कृतिक लोक नृत्य समूह ने जोनसारी लोक नृत्य से की। जिसमे उन्होंने पहले अपने ईष्ट देवता श्री महासु देवता की आराधना कर प्रस्तुति का श्रीगणेश किया। उसके बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध लोकृत्य हारूल (नृत्य द्वारा ऐतिहासिक गाथा पर अभिनय) का प्रदर्शन किया। उसके बाद उन्होंने तान्दी नृत्य की प्रस्तुति दी जो की एक कतारबद्ध अर्धचंद्राकार एक दूसरे की कमर पकड़कर किया जाता है जिसे एकता का प्रतीक भी माना जाता है। दीपावली के अवसर पर उन्होंने दीपक नृत्य पर भी प्रस्तुति दी। आखिर में उन्होंने हिरण नृत्य(गांव के मुखिया को हिरण पर बिठाकर अभिनय) एवं वीर रस पर एक विजय जीत नृत्य का प्रदर्शन कर प्रस्तुति का समापन किया। यह लोक नृत्य कार्यक्रम नंद लाल भारती ( अंतराष्ट्रीय लोक कलाकार )के नेतृत्व में हुआ जिसमे उनके 21 कलाकारों ने इस प्रस्तुति को सफल बनाने में अपना सहयोग दिया। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम की अन्य प्रस्तुति में सुनंदा शर्मा द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी गई। जिसमे उन्होंने बनारस घराना शैली के गायन प्रस्तुत किया। उन्होंने राग केदार ’चांदनी रात’ में ख्याल बंदिश के साथ कार्यक्रम की शुरूआत की एवं उन्होंने राग मिश्रकाफी में बंदिश के साथ ’मियां नजरें नहीं आंदा वे’ प्रस्तुत किया। उन्होंने दादरा और ठुमरी से भी लोगों का मन मोहा। पंजाब के पठानकोट के पास दाह में जन्मी सुनंदा जी ने चार साल की उम्र में अपने पिता पं सुदर्शन शर्मा से प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। बाद में उन्होंने संगीत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और अपने परास्नातक में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से भारतीय शास्त्रीय गायन संगीत में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। बनारस घराने की प्रसिद्ध गायिका गिरिजा देवी ने उन्हें जालंधर के हरिबल्लभ संगीत सम्मेलन में देखा और उनके गायन कौशल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने सुनंदा जी को अपने संरक्षण में ले लिया। अगले नौ वर्षों में, गुरु, गिरिजा देवी, शिष्या, सुनंदा शर्मा, को एक कलाकार के रूप में विकसित करने में मदद करती हैं, जिसमें उनकी गायकी में शास्त्र और भाव को निखरने का वक्त मिला।