किसान दीपक उपाध्याय ‘व्हाट एन आईडिया सर जी’
विस्तार लेती आबादी के कारण खेती की जमीन सिमटती जा रही है. ऐसे में खेती के नए प्रयोग किसानों के साथ ही आम लोगों की लिए भी जरूरी हैं. नकरोंदा गांव के दीपक उपाध्याय ने जैविक खेती का ऐसा ही एक अनूठा मॉडल विकसित किया है, जिससे वो खुद के लिए आजीविका का बेहतर जरिया खड़ा करने के साथ ही दूसरों को भी प्रेरणा बन गए हैं | देहरादून के नजदीकी नकरौंदा गांव के आखिरी छोर तक भी अब बस्ती का विस्तार हो गया है, जबकि कभी इस इलाके में खेती लहलहाती थी. ऐसे में इस गांव के छोटी जोत वाले किसान दीपक उपाध्याय ने नई तरह की खेती का रुख किया. करीब दस साल पहले उन्होंने महज चार बीघा जमीन पर पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया था, जिसमें वो टमाटर, करेला, शिमला मिर्च, लोबिया और भिंडी जैसी सब्जियां उगा रहे हैं.इन फसलों का उत्पादन पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है, लेकिन खास बात ये है कि इसमें रासायनिक खाद की बजाए जैविक खाद का उपयोग किया जाता है | जैविक उत्पादों की उन्हें रासायनिक उत्पादों के मुकाबले कहीं बेहतर कीमत मिल जाती है.रासायनिक खाद गोबर से मिलती है, जिसके लिए वो पशुपालन करते हैं. इसमें भी उन्होंने पूरी तरह देशी नस्ल की गायों को तरजीह दी है, जिनसे उन्हें पंद्रह किलो दूध रोजाना मिल जाता है. इसी चार बीघे जमीन के एक हिस्से में उन्होंने मुर्गी पालन भी किया है. मुर्गियों के बाड़ा भी रोजाना अंडों के रूप में उनकी आर्थिकी का जरिया बना हुआ है | यही नहीं, जमीन के एक हिस्से में चालीस गुणा बीस फीट का एक तालाब भी बनाया गया है | इस तालाब में तीन तरह की मछलियां पनपाई गई हैं. मछलियों की पहली खेप को अब वो बाजार भेजने की तैयारी कर रहे हैं | इस परिसर में एक जगह पर बायोगैस प्लॉट भी लगाया गया है, जिससे उन्हें खुद के उपयोग के लिए ईंधन मिल जाता है. यही वजह है कि गैस कनेक्शन की लाइन में नहीं लगना पड़ता है | गांव के किसान राय सिंह बताते हैं कि उपाध्याय का काम देखकर उन्होंने भी अब जैविक खेती का रुख कर लिया है, जिसमें थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है और कम खर्च में बेहतर कमाई वाली उपज तैयार हो जाती है | एक और किसान सुरेंद्र सिंह भी कुछ ऐसा ही मानते हैं, वो कहते हैं कि ये भविष्य की खेती है और बेरोजगार होती युवा पीढ़ी को इसे जरूर सीखना चाहिए |
साभार -बालकृष्ण ध्यानी