गाँव से पलायन के जिम्मेदार कहि न कहि हम सब
अरुण कुमार यादव (संपादक)
उत्तराखण्ड में जहा एक तरफ ऐसा शहर बसता जा रहा है जो नये पीढ़ी के नवजवानों को अपनी तरफ आकर्षित करती जा रही है वही ऐसा गाँव भी है जो उजड़ता जा रहा है | इन सभी क्रम का कारण खुद उत्तराखण्ड के गाँव में बचपन बिताने वाले जो अब शहर की शोभा बढ़ाने में व्यस्त है वह है | जो गाँव की प्राकृतिक हवा को छोड़ कर शहर की प्रदूषित हवाओ का सेवन कर रहे है जो गाँव की संस्कृती एवम् उसकी सभ्यता को छोड़ शहर की सभ्यता का चादर ओढे हुए है जो गाँव का मडुए का आटा छोड़ शहर का चाइनीज ब्यंजन का लुफ्त उठा रहे है |जो गाँव के जड़ी बुटियों युक्त प्राकृतिक दवाओ को छोड़ शहर की अंग्रेजी दवाओ का प्रयोग कर रहे है | गांव छोड़ने वाले लोगो से जब प्रश्न किया जाता है की गाँव क्यों छोड़ा तो जवाब गांव में सुख सुविधाओ का अभाव के साथ साथ नौकरियों का न होना बताया | लेकिन दूसरे नज़रिये से देखा जाय तो पहाड़ के गाँव की मडुए का आटा एवं पहाड़ी व्यंजनों से क्या चाइनीज व्यंजनों की तुलना की जा सकती है |क्या इन्ही को एग्रीकल्चरल के माध्यम से आर्थिक स्थिति को मजबूत कर नौकरियों को चुनौती नही दिया जा सकता | गांव पलायन का जिम्मेदार कहि न कहि हम सब भी है जो जीवन चर्या से युक्त सभी प्रसाधन सुख सुविधाओ को छोड़ शहर का रुख कर रहे है |