जाती नही आर्थिक आधार पर हो आरक्षण
देश को अंग्रेजो से आज हुए इतने सालो बाद भी उनके सिद्धांतओ की बू आज भी विद्यमान है | बात हो रही है बटने और बाटने की | इसका सबसे बड़ा विकराल रूप जातिगत आरक्षण में मिलता है | आरक्षण और जाती एक दूसरे के पूरक होने के कारण आज देश जाती और आरक्षण में फ़सा है | आरक्षण की पहली कमजोर कड़ी जाती है इस क्रम में शिक्षा में आज एक समान्य वर्ग का मेधावी छात्र उस छात्र से पिछड़ जाता है जहा उस छात्र की विद्वांता को आरक्षण प्रश्न चिन्ह लगा देती है | शिक्षा में आरक्षण उस समय और विकराल रूप ले लेती है जब नौकरी की श्रेणी में भी फन फैलाये बैठी रहती है | ऐसा होने पर देश को होनहार प्रतिभाओ से वंचित रहना पड़ता है | मेरा मानना है की देश की जनता और अनेक संगठन जातिगत आरक्षण का विरोध कर आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन करे जिससे राजनितिक पार्टियो का रोटी पक न पाये तथा देश हुनर और होनहार का सम्मान कर देश को विकसित देश की श्रेणी में खड़ा कर सके |