निजी स्कूलो की मनमानी कब तक ?
उत्तराखण्ड राज्य बनने से अब तक विकास का पहिया जिस भी रफ़्तार से हो पर देहरादून में शिक्षा को लेकर पुरे देश में अपनी एक अलग पहचान बनी है|उत्तर प्रदेश राज्य से अलग होने के बाद उत्तराखण्ड राज्य की जनता का सपना था की आम लोगो से जुडी सभी समस्या का समाधान आसानीपूर्वक हल हो सकेंगे लेकिन जिस प्रकार से निजी स्कूलो द्वारा अविभावकों की जेब पर प्रहार कर रहे है ऐसा उम्मीद को न थी| एक बार फ़िर देहरादून की अनेक संगठनो की एक जुटता से निजी स्कूली की फीस को लेकर उनकी मनमानी को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बना रही है|उत्तराखण्ड सरकार सच्ची नियत से निजी स्कूलो पर लगाम लगाये जिससे उत्तराखण्ड की जनता अपने बच्चों को अपने बजट के अनुसार अच्छी शिक्षा दे सके मध्यम वर्ग सोचता है की अपने बच्चे को अच्छा शिक्षा प्रदान कराउ पर इसको पूरा करने के लिए मध्यम वर्ग के अविभावक अपनी जमापूँजी तक लगा देते हैपर सरकार निजी स्कूली की फीस को लेकर उनकी मनमानी पर कोई कठोर कदम नहीं उठाती|सरकार इस पर कठोर कदम उठा कर जनता के प्रति एक नाज़िर बने जिससे वह जनता की हितैसी सरकार बन सके|
अरुण कुमार यादव (संपादक)