पहचान : दवा से लेकर दर्द तक का रिश्ता
मुंबई | यह सत्य है की डाक्टर भगवान् का रूप होते है इस कथन को सत्य किया है शिवडी टीबी अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर ललित आनंदे, जिनके लिए मरीज केवल मरीज न होकर परिवार का एक हिस्सा हैं। यूं तो मरीजों का इलाज करना डॉक्टरों का पेशा होता है, लेकिन डॉ. आनंदे के लिए यह उनका धर्म है। मरीजों की बेहतरी के लिए वह समाज, सिस्टम यहां तक कि परिवार वालों से भी लड़-भिड़ जाने को तैयार रहते हैं। टीबी को लेकर डॉ. आनंदे के जुनून का अंदाजा बस इस बात से लगाया जा सकता है कि वह खुद चाहते हैं कि जीवन में एक बार उन्हें टीबी हो, ताकि इससे होने वाले दर्द को वह खुद महसूस कर सकें। एमबीबीएस करने के बाद डॉक्टर अक्सर एमडी या उससे ऊपर की डिग्री लेने की सोचते हैं। लेकिन डॉ. ललित आनंदे तो इस इंतजार में थे कि कब उनकी एमबीबीएस की पढ़ाई खत्म हो और वह टीबी मरीजों के लिए काम करें। 1990 के दशक में एमबीबीएस करने के बाद डॉ. आनंदे ने टीबी को तब अपने करियर के रूप में चुना था, जब लोग इस रोग के बारे में सुनने से ही डर जाते थे। डॉ. आनंदे बताते हैं कि खुद उनके यार-दोस्त और करीबी उन्हें टीबी चिकित्सा को करियर के रूप में चुनने से बचने की नसीहत दे रहे थे। डॉ. आनंदे के लिए मरीजों का इलाज कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शादी वाले दिन भी वह दिनभर अस्पताल में बिताने के बाद वहीं से तैयार होकर सीधे मंडप में पहुंचे थे।