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पापा ने बेचे लंगोट, भाई ने दांव पर लगाया करियर, जानिये खबर

pehchan

एशियन गेम्स की फ्रीस्टाइल रेसलिंग में दिव्या ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया पर इस जित के पीछे दिव्या के संघर्ष की कहानी बेहद भावुक कर देने वाली है। दिव्या के पिता सूरज दिल्ली के गोकुलपुर इलाके में किराये के मकान में रहते हैं। रेसलर दिव्या ने जैसे ही चीनी ताइपे की पहलवान चेन वेनलिंग को चित्त किया, उनके परिवार में भी जश्न का माहौल बन गया। इसी साल गोल्ड कोस्ट में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी दिव्या ने भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया था। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास पुरबालियान से ताल्लुक रखने वाले सूरज करीब 19 साल से दिल्ली में किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं। वह लंगोट बेचते हैं और दिव्या की मम्मी घर में सिलाई करती हैं। दिव्या ने इन्हीं विषम परिस्थितियों में कड़ी मेहनत के दम पर खुद को एक इंटरनैशनल रेसलर बनाया और कई मेडल जीते। दिव्या के पिता सूरज भावुक होते हुए बताते हैं कि कुछ साल पहले वह लंगोट बेचने के लिए ट्रेन में पहलवानों के साथ ट्रेन में जा रहे थे। उन्होंने अपना सामान कपड़े और पैसे अपने बैग में रखकर ट्रेन की सीट के नीचे रख दिए और सो गए। जैसे ही आंख खुलीं तो देखा कि न तो बैग थे और न ही सामान। यह दिवाली से 2-4 दिन पहले की ही बात थी। घर पहुंचे तो बच्चों ने पटाखों, कपड़ों के लिए पिता से पैसे मांगे.. यह देखते ही उनकी आंखों से आंसू आ गए। तब दिव्या ने कहा कि पापा, आप चिंता मत करो, मैं कुछ करूंगी। तब दिव्या ने लड़कों से अखाड़े में मुकाबला किया और कई हजार रुपये बतौर इनाम जीते।

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