पिटकुल : एडीबी द्वारा पोषित कई सौ करोड़ो की परियोजना में घिनोने खेल को अंजाम देना लगभग तय !
400 केवी लाइन की निविदा प्रक्रिया में बरती जा रही भारी अनियमतायें
देहरादून ( विशेष सवांददाता ) । लगभग एक दशक में जिस श्रीनगर-काशीपुर 400 केवी लाइन प्रोजेक्ट का शुरू तक नहीं हो पाया, फर्जीवाड़े के चलते अफसरों ने अब उसका नाम ही बदल दिया है। ऐसा इस प्रोजेक्ट के लिए एडीबी से लोन पाने को किया गया है। पिटकुल ने वर्ष 2006-07 में एक कंपनी से इस लाइन का सर्वे कराया था। 152.8 किलोमीटर की लाइन के सर्वे को 57 लाख रुपये दिए गए। इसके बाद निर्माण का काम जिस कोबरा कंपनी को मिला, उसने पुराना सर्वे की त्रुटियो को उजागर कर और तकनीकी एवम भारत सरकार के मानकों के अनुरूप सर्वे कर लाइन की लंबाई 190 किलोमीटर का प्रस्ताव दिया जिसके अनुमोदम में विभाग 2 वर्ष लग गए ओर कार्य ससमय पूर्ण नही हो सका। इससे निर्माण की लागत 530 करोड़ से 800 करोड़ के ऊपर पहुंच गई थी। लाइन निर्माण मार्च, 2017 तक पूरा होना था। पिटकुल प्रबंधन व परियोजना से जुड़ी निजी कंपनी कोबरा के अफसरों की लापरवाही से योजना खटाई में पड़ गई। इस परियोजना में पिटकुल एक कदम आगे भी नहीं बढ़ पाया। अब पिटकुल प्रबंधन व निजी कंपनी कोबरा की आपसी लड़ाई अदालत तक पहुंच गई है। कोबरा कंपनी की ओर से पिटकुल प्रबंधन के खिलाफ आर्बिट्रेशन में वाद दाखिल किया गया है। परन्तु पिटकुल द्वारा दाखिल मुकदमे में परियोजना का प्रारूप व नाम बदल कर क्या ले पायेगा क्लेम जो अब पूर्व में आवंटित परियोजना से भिन्न है तो क्या न्यायलय स्वीकार्य नही करेगा। इस प्रकरण में पूर्व पिटकुल प्रबंध निदेशक की ओर से भी आंतरिक जांच कमेटी गठित की गई थी जो अब तक जांच पूरी कर पायी है ओर वैसे तो समयसीमा के निर्धारण का ऊर्जा विभाग में चलन ही नही है।
परियोजना एडीबी द्वारा वित्त पोषित है फिर भी सारे नियम कानून ताक पर
2014 मे इस परियोजना के लिए 530 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। टेंडर भी कर दिया गया। कोबरा कंपनी को ठेका भी दे दिया गया, पिटकुल की ओर से 53 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान भी कर दिया गया, लेकिन बाद में कुछ अड़चन आ गई जिसकी वजह से कंपनी काम नहीं कर किया। आखिरकार बाद में एडीबी ने बजट देने से ही इंकार कर दिया। अब एडीबी से लोन लेने के लिये अफसरों ने प्रोजेक्ट का नाम बदलकर खंदूखाल रमपुरा डबल सर्किट कर दो भागों में बाट दिया। पिटकुल अफसरों के मुताबिक अब इस परियोजना की 150 किमी की जगह 191 किमी और निर्माण लागत 530 से बढ़कर 1197 करोड़ हो गई है। सूत्रों की माने तो यह जानकारी मिली कि एडीबी को धोखे में रख कर परियोजना की निविदा को भरने की योग्यता से छेड़-छाड़ की गई है। जिसकी आपत्ति एडीबी ने लिखित रूप में कई पत्र भी दिये और योग्यता को बदलने का भी अनुरोध भी किया गया । परन्तु विभाग के कानों में जु तक नही रेंगी। जिससे कि पिटकुल के आला अफसरों की मिली-भगत द्वारा कुछ निजी कंपनीयो को परियोजना दिलायी जा सके और मिलकर करोडो का घोटाला किया जा सके अब जल्द ही सुनियोजित निविदाओं को डलवा कर विभाग पूर्ण नाटकीय रूप से मामले को अंजाम देने की तैयारी में लगा है। देखना यह है कि क्या हमारा यह प्रयास से यह घोटाले का प्रकरण रुकता है या सरकार यूँही सोती रहेगी। इस बात को नकारा नही जा सकता यदि इस प्रकरण पर सरकार ने सुध न ली तो यह वर्तमान की TSR सरकार के कार्यकाल का भविष्य में सबसे बड़ा घोटाला सिद्ध होगा।
एडीबी की शर्तो के अनुरूप नही हो रहा निविदा नियमो का पालन
सूत्रों की माने तो विभाग के आला अधिकारी जीरो टॉलरेन्स का हवाला देने वाली TSR सरकार को भी धोखे में रख कर वर्षो पूर्व पाय गए दोषी अधिकारी जो की पूर्व में ज्योति कंपनी द्वारा कराये फर्जी सर्वे के कर्णधार रहे है और जिस फर्जी सर्वे की वजह से उक्त लाइन नहीं बनाई जा सकी व ADB का लोन भी लैप्स हो गया एवं जिसके खिलाफ विभाग के आदेशो अनुसार मुकदमा दर्ज कराया जाना था , उसको अति सुगम स्थान देहरादून हेडक्वार्टर में नियुक्तिकरण किया ओर तो ओर उसकी पदौन्नति के अधिक्षण अभियन्ता बना दिया गया ओर अब मुख्य अभियन्ता के पद पर नवाज कर क्रय विभाग का मुखिया बनाने की तैयारी मैं जुटा है विभाग ताकि मामले को अमलीजामा पहनाया जा सके और जनता की आंखों में धूल झोंकी जा सके। ऐसा क्यों किया जा रहा है। इसके बारे में अधिकारी अब भी कुछ बताने को तैयार नहीं हैं कहीं कोई उच्च स्तरीय वर्द्धस्त तो प्राप्त नही जो इतनी सारी अनियमताओ को अंजाम दिया जा रहा है। जब की ज्योति कंपनी द्वारा कराये गए सर्वे कार्य में अनगिनत खामिया थी जो की स्पष्ट इंगित करता है कि धरातल में सर्वे कार्य किया नहीं गया था केवल दफ्तर में बैठकर लीपापोती कर करोड़ों रुपयों का भुगतान कंपनी को कर बन्दर बात की गयी।आज भी यदि ज्योति कंपनी द्वारा किये गए सर्वे का स्थलीय सत्यापन करा लिया जाये तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाये। परिणामस्वरूप देवभूमि की छवि धूमिल होने के साथसाथ आईएएस अफसरों की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगने लगा है। और खामियाजा प्रदेश की जनता को जनधन की बर्बादी से झेलना पड़ रहा है।