मशरूम उत्पादन से होगा हिमालयी अर्थ व्यवस्था में बदलावः निशंक
देहरादून। हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से सासंद व सरकारी आश्वासन संसदीय समिति के सभापति तथा पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक ने आज लोक सभा में प्रश्नकाल के तहत हिमालय क्षेत्र में बेरोजगारी व पलायन पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए हिमालयी राज्यों की आर्थिकी में मशरूम उत्पादन के महत्व को रेखांकित करते हुए सरकार से पूछा कि संपूर्ण देश में राज्यवार मशरूम उत्पादन की क्या स्थिति है। डाॅ0 निशंक ने कृषि मंत्री से हिमालीय राज्यों में मशरूम की विशेष प्रजातियां/किस्मों को उगाने के लिए सरकारी योजनाओं का ब्यौरा मांगा। डाॅ0 निशंक ने मंत्री से यह भी जानना चाहा कि अभी तक कितने किसान इनसे लाभान्वित हुए हैं। डाॅ0 निशंक ने मशरूम उत्पादन क्षेत्र के साथ खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए इस बाबत सरकारी योजनाओं की विस्तृत जानकारी मांगी। डाॅ0 निशंक के प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने बताया कि देश में कुल एक लाख 33 हजार 732 टन मशरूम का उत्पादन होता है जिसमें से उत्तराखंड में 10 हजार टन से ज्यादा का उत्पादन है। उत्तराखंड में 300 से अधिक किसान इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं । कुल मिलाकर 5000 काश्तकार इस उद्योग में लगे हैं । कृषि मंत्री ने आगे बताया कि सरकार ने एक सक्षम निगरानी तंत्र बनाया है। मंत्री ने आगे बताया कि मशरूम से जुड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई तंत्र का अभाव है। डाॅ0 निशंक को मंत्री ने आगे बताया कि देश में विभिन्न कृषि एवं बागवानी योजनाओं का कार्यान्वयन तेजी से किया जा रहा है। केन्द्रीय कृषि मंत्री की अध्यक्षता में कार्यकारी समिति के माध्यम से बागवानी से जुड़ी योजनाओं की निगरानी की जाती है। राज्य, जिला और पंचायती स्तर पर सरकारी कार्यक्रमों की निगरानी करती है। सरकार ने यह भी बताया कि सरकार समेकित बागवानी मिशन के तहत पहाड़ी राज्यों में किसानों को मशरूम उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। मशरूम अनुसंधान संस्थान द्वारा बटन मशरूम और सीटेक मशरूम की कई किस्में तैयार की गयी हैं। राज्य विस्तार प्रभागों के जरिए सरकार तापमान एवं जलवायु अनुकूलन करने के लिए विभिन्न किस्मों को तैयार किया गया है। डाॅ0 निशंक ने इस बात पर बल दिया कि कौशल विकास योजना के तहत मशरूम उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि क्षेत्र की आर्थिकी के साथ-साथ पलायन की गम्भीर समस्या से निपटा जा सके। पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।