मैड ने रिस्पना पुनर्जीवन पर इको टास्क फ़ोर्स को दिया विस्तृत ज्ञापन
देहरादून | देहरादून के शिक्षित छात्रों के संगठन मैड संस्था ने इको टास्क फ़ोर्स को रिस्पना पुनर्जीवन पर एक विस्तृत ज्ञापन दिया है। ज्ञापन देने से पूर्व इको टास्क फ़ोर्स ने ज़िला अधिकारी, सिंचाई सचिव समेत विभिन्न उच्च अधिकारियों से रिस्पना पुनर्जीवन पर उनकी राय एवं सलाह मशवरा माँगा था। इसी कड़ी में इको टास्क फ़ोर्स का पत्र मैड संस्था को भी दिया गया था। गौरतलब है कि सामाजिक संगठनों में से केवल मैड से उसके सुझाव मांगे गए थे क्योंकि संस्था के सदस्यों ने इससे पुर्व 15 नवंबर को मुख्य सचिव उत्पल कुमार की अध्यक्षता में हुई बैठक में रिस्पना पुनर्जीवन पर एक विस्तृत प्रस्तुति भी दी थी और इको टास्क फ़ोर्स के अधिकारियों को रिस्पना के उद्गम स्थल का भी मुआयना कराया था। अपनी तरफ से मैड संस्था ने सुझाव पेषित करने से पहले देहरादून के विभिन्न सामाजिक संगठनों को एक बैठक में बुलाकर उनसे उनके सुझाव मांगे थे। इसमें 15 से भी ज़्यादा संगठन शामिल हुए थे। इसके बाद मैड संस्था ने खुद आत्मचिंतन एवं मंथन किया और अपने सुझाव पेषित किये। इन सुझावों में मुख्य बल इस सुझाव पर दिया गया कि रिस्पना के उद्गम क्षेत्र को रिस्पना इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाए और निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध एवं नियंत्रण किया जाए। इसमें सुझाव यह दिया गया है कि ना सिर्फ मसूरी से आ रही जलधारा को पुराने राजपुर के समीप केलाघट एवं मकरैत तक संरक्षित किया जाए बल्कि नदी के दोनों तरफ 50 मीटर तक के क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया जाए। इसके साथ साथ मैड संस्था ने यह भी सुझाव दिया है कि रिस्पना में शून्य कूड़ा निस्तारण का लक्ष्य होना चाहिए और इसके लिए ज़रूरी है कि बड़े होटलों को भी सख्त निर्देश दिए जाये कि वह अपने कूड़े इत्यादि का खुद उपचार करें और उसे उपचार प्रणाली के बाद ही रिस्पना में प्रभाव के लिए भेजें। इसके साथ मैड संस्था ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अंततः रिस्पना के पुनर्जीवन का कार्य बिना वैज्ञानिक सलाह के होना मुमकिन नहीं है। इसके लिए राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रूड़की की 2014 की उस रिपोर्ट को बुनियाद बनाया जा सकता है जिसमे प्रारंभिक शोध के बाद राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान ने रिस्पना को बारहमासी नदी का दर्जा दिया था और आगे भी शोध जारी रखने की बात कही थी। इसलिए मैड संस्था ने यह सुझाव दिया है कि राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान या वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी को यह कार्यभार दिया जाए कि वह रिस्पना पुनर्जीवन का खाका तैयार करें और पानी के बहाव का आंकलन करने हेतु उसमे जो भी यंत्र ज़रूरी तौर पर चाहिए होते हैं उनसे वह अपना काम शुरू करें। इसके साथ साथ मैड ने यह भी सुझाव दिया है कि रिस्पना पुनर्जीवन पर विभिन्न सरकारी विभागों को साथ काम करने की ज़रूरत है। उदाहरण के तौर पर यह कहा गया कि एक और जहाँ रिस्पना की सफ़ाई का कार्य नगर निगम को दिया गया है वहीँ दूसरी और लोक निर्माण विभाग सड़कें बनाने हेतु प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहता है और इसके लिए जगह जगह आवेदन देता रहता है। इसलिये ऐसी प्रणाली विकसित की जा सकती है जिससे रिस्पना की सफाई से निकल रहा पॉलिथीन लोक निर्माण विभाग तक पहुँचाया जा सके या पुनः चक्रिकरण के लिये दिया जा सके। इसी तरह के नाना प्रकार के सुझावों के साथ मैड संस्था ने अपना ज्ञापन इको टास्क फ़ोर्स को इस उम्मीद के साथ दिया है कि डी पी आर बनाने में यह सुझाव काम आएंगे। गौरतलब है कि मैड संस्था रिस्पना पुनर्जीवन पर विगत सात वर्षों से अभियान छेड़े हुए है और इस संस्था के सभी सदस्य पंद्रह से चौबीस वर्ष की आयु के युवा रहे हैं।