व्यंग्यः हर मानुष को पता चल गया है कि मीटू क्या है….
ये मीटू-मीटू क्या है, ये मीटू-मीटू। अब तो हर-हर मानुष को पता चल गया है कि मीटू क्या है और जो एक वायरस की तरह फैल रहा है। इस वायरस का डंक सबसे पहले राजनीति की चादर और फिल्म इंडस्ट्री के तकिये पर पड़ा है। खुलेआम चर्चा चल रहा है कि इसने तब मेरे साथ ये किया और उसने अब मेरे साथ वो किया। वर्तमान में तो यह वायरस हाई क्लास के चश्मे के शीशों को ही कुरेद रहा है और आगे क्या होगा, वो मीटू वायरस के आतंक पर निर्भर करता है। खैर, अपनी नजरों को सातों आसमानों पर दौड़ायें तो मीटू वायरस के लक्षण अन्य रूपों में भी उभर कर आ सकते हैं। गांव, नगर, महानगर, हर जगह विद्यालय हैं, इंस्टीट्यूट हैं, कोचिंग सेंटर हैं, निजी कंपनियों में नौकरियां हैं और घरों में ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर भी हैं। महिला और युवतियों को तो अब मीटू वायरस की छत्रछाया मिल ही चुकी है, तो सारे मामले भी सामने आना लाजिमी है। मीटू वायरस है, अब इससे बचना मुश्किल है, कहीं भी चिपक सकता है। क्योंकि अच्छी जिन्दगी, खान-पान, रहन-सहन और पहनावे की ख्वाहिश तो सभी रखते हैं। बस अंतर इतना सा है कि कुछ लोग कान को सीधा पकड़ रहे हैं और कुछ लोग हाथ घुमाकर कान पकड़ रहे हैं। हो सकता है कि किसी भी पुरूष ने उपरोक्त स्थानों पर जबरन यौन उत्पीड़न किया हो और घर के डर से, अपनी आर्थिक तंगी और समाज के कारण मामला सामने न आया हो। लेकिन अब वो थोड़ा डर के रहे, मीटू वायरस अगर लग गया तो अब चिल्लाने लगेंगे… मीटू-मीटू। क्योंकि पहले भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं कि इस विद्यालय, इस इंस्टीट्यूट, इस कोचिंग में ऐसा हो गया। इस बात का पता नहीं है कि जो भी हुआ जबरदस्ती हुआ या अपनी ख्वाहिशों की खातिर हुआ। लेकिन मीटू वायरस आने वाले समय में मिडिल क्लास और लोअर क्लास के चश्मे की डंडियों को भी नहीं बख्शेगा। बात करते हैं निजी कंपनियों की तो सैलेरी सभी को अच्छी चाहिए, प्रमोशन की इच्छा सभी की होती है। लेकिन जो काम क्यूटू या स्वीटू बनकर ही हो रहा है तो देरी किस बात की। क्योंकि सपने देखे बड़े-बड़े, बड़ा कुछ भी ना करना पड़े। सीधी सी बात है कि अगर इस दुनिया में सभी लोग एक जैसे होते तो या तो यह दुनिया स्वर्ग होती या नर्क। तात्पर्य यह है कि हर पुरूष और हर स्त्री की सोच समान नहीं है तो केवल महिला या पुरूष को ही दोष देना बेहतर नहीं है। जब क्यूटू या स्वीटू बनकर किसी ने अपनी इमेज को 0 से 10 पर पहुंचा दिया है। बाद में 0 से 10 तक सफर याद नहीं है, बल्कि मीटू वायरस ने वो भी भुला दिया। बहरहाल, अब तो डर का माहौल हो गया है, पता नहीं कब मीटू वायरस का प्रकोप समाज को अपनी आगोश में लेता है। अब लगता है कि कोई लड़का नये शहर में आया हो और किसी का पता पूछना हो तो वो लड़की से पूछने से पहले 100 बार सोचेगा। अगर यहां भी मीटू का वायरस आ गया तो हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि ‘‘बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना।’’
राज शेखर भट्ट (सम्पादक)
देहरादून