समाज का असली चेहरा ….
अरुण कुमार यादव – सम्पादक
समाज में रह कर समाज के असहाय लोगो को मदद और सम्मान देने की परम्परा जिस तरह से विलुप्त हो रही है यह एक सोचने का विषय है | इस वाक्यांश को ऐसे ही नही बोल रहा हूँ क्यों की ऐसी सच्चाई जानने के लिए जब रात्रि के समय सड़को पर असहाय लोगो से मिलने निकला तो कहि न कहि समाज रूपी सच का पर्दा सामने आने लगा | इस सफर के बातचीत के दौरान समाज का असली चेहरा भी देखने को मिला | इस दौरान मुलाक़ात वृद्ध व्यक्ति शम्भु जी से हुई बातचीत में उन्होंने बताया की एक बिमारी के कारण घर से 5 साल पहले बच्चों ने निकाल दिया | यूपी निवासी शम्भु जी रूठे मन से एक ही शब्द बोल रहे थे इससे अच्छा औलाद ही न हो | यह शब्द समाज के लिए बहुत कुछ बयाँ कर रहा है | इसी कड़ी में सहारनपुर रोड स्थित फ़ुटपाथ पर बैठे मानसिक रूप से कमजोर शख्स से हुई नाम पूछने पर वह नाम तो नही बता पाए पर इशारो में भूखे होने की बात कही जब खाना खिलाया गया तो नम आँखो से मुस्कुराते हाथ जोड़ धन्यवाद का इशारा किये | आगे बढ़ाते हुए प्रिंस चौक पहुचा | प्रिंस चौक स्थित स्थान पर भूखे और आँखो में आशाएं लिए व्हील चेयर पर बैठे मनोज से हुई | मनोज के पास जाने पर उन्होंने कहा मुझे भूख लगी है हम लोगो ने कहा हम आप को खाना खिलाने ही आये आप के पास | बात बात में मनोज ने बताया पहले मजदूरी करता था उसी से गुजर बसेरा करता था पर एक दिन सड़क दुर्घटना में मेरे दोनों पैर खराब हो गए | साहब अब कोई काम नही देता है जिससे मैं और अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे सकूँ | साहब कुछ समय पहले एक जगह काम कर रहे थे लेकिन हाथ से कुछ नुकसान होने पर वह मालिक हमे काम से निकाल दिया | ऐसा सुन कर लगा की आज की समाज असहाय होने पर आप को दो वक्त की रोटी तक नही खिला सकती | अंत में इन सभी असहाय लोगो से मुलाक़ात के बाद मन सवाल उठना लाजमी है समाज आखिर किस दिशा की ओर जा रहा है | मैं समाज से अपील करता हूँ अपने माता पिता के साथ ऐसा न करे एवम् असहाय जरूरतमंद लोगो की मदद के प्रति गंभीर रहे |