सुविधा से वंचित बच्चों को पढ़ाने के लिये लोकल ट्रेन में भीख मांगते है प्रोफेसर, जानिए खबर
अपनी गुज़र बसर के लिये भारत की ट्रेनों में भीख मांगते लोग आप को आसानी से दिख जाते होंगे और यह बहुत ही आम नज़ारा है। लेकिन एक पढ़ा लिखा आदमी जो पेशे से प्रोफेसर हो ट्रेन में भीख मांगे यह जरूर हम सब के लिये थोड़ी अटपटी बात है। ये एक ऐसे इंसान है जिसका मकसद हर गरीब बच्चे को शिक्षा दिलाना और उन्हें अपने जीवन में स्वावलम्बी तथा आत्मनिर्भर बनाना है जिसके लिए वह ट्रेनों में भीख माँग कर पैसे इकट्ठा करने में भी नहीं हिचकता। सुविधा से वंचित बच्चों को पढ़ाने के लिये मुंबई की लोकल ट्रेन में भीख मांगते है | हम बात कर रहे हैं संदीप देसाई जिन्होंने बतौर मरीन इंजीनियर अपने कैरियर की शुरुआत की और बाद में एसपी जैन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में प्रोफेसर के रूप में काम किया। लेकिन गरीब और वंचित समुदाय के बच्चों की जिंदगी बदलने के उद्देश्य से उन्होंने नौकरी छोड़ने का निश्चय किया। नौकरी के दौरान उन्हें प्रोजेक्ट्स के सिलसिले में अक्सर गांव देहातों में जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें यह देख कर बड़ा दुख होता था की गांव के बच्चों की शिक्षा का कोई विशेष प्रबंध नहीं है और ज्यादातर बच्चे अनपढ़ ही रहकर अपनी पूरी जिंदगी खेतों में काम करते या मजदूरी करते बिता देते हैं। वह इन बच्चों के लिये कुछ करना चाहते थे और इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये उन्होंने वर्ष 2001 में श्लोक पब्लिक फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट की नींव रखी। इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है। उन्होंने मुंबई के स्लम एरिया में बच्चों की दुर्दशा देखकर वर्ष 2005 में गोरेगांव ईस्ट में एक स्कूल खोला, जहाँ आस पास के स्लम के बच्चे पढ़ने आने लगे। कुछ ही समय में इस स्कूल में बच्चों की संख्या 700 तक पहुंच गयी और कक्षा 8 तक वहाँ पढ़ाई होने लगी। हालाँकि वर्ष 2009 में उन्होंने स्कूल बंद कर दिया, जब सरकार ने RTE ACT पारित कर प्राइवेट स्कूलों में 25% सीट गरीब बच्चों के लिये आरक्षित कर दी। उसके बाद के कुछ साल उन्होंने और उनकी संस्था ने कई गरीब बच्चों का करीब 4 प्राइवेट स्कूलों में RTE ACT के तहत दाखिला कराया और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस नियम से अवगत कराया। बहुत से स्कूल इस में आनाकानी करते थे लेकिन जब उनको यह बताया जाता था कि यदि उनके इस प्रकार के आचरण की रिपोर्ट सरकार को कर दी जाए तो उन पर 10 हज़ार प्रतिदिन का जुर्माना लग सकता है तब जाकर वह बच्चों को दाखिला देते थे। उसके बाद उन्होंने देखा कि बहुत सी जगह पर अब भी लोगों को इस नियम की जानकारी नहीं थी तब उनके मन में एक इंग्लिश स्कूल खोलने का विचार आया और इसके लिए उन्होंने सूखे की मार झेल चुका और बहुत से किसानों की आत्महत्या का गवाह बना महाराष्ट्र में यवतमाल को चुना, जहाँ बच्चों को मुफ्त यूनिफार्म, किताबें आदि दी जाती थी और पिछले साल से खाना भी देना शुरू किया गया है। संदीप के लिये यह सब आसान नहीं रहा सबसे बड़ी चुनौती फंड्स की थी। इसके लिये उन्होंने करीब 250 कॉर्पोरेट्स को ख़त लिखा लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली, किसी ने पूरे स्कूल को प्रायोजित करने की बजाय सिर्फ वार्षिक समारोह में मदद की बात कही, तो किसी ने अपना खुद का कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (CSR) का हवाला दे मदद से इनकार कर दिया। हम बात कर रहे हैं संदीप देसाई जिन्होंने बतौर मरीन इंजीनियर अपने कैरियर की शुरुआत की और बाद में एसपी जैन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में प्रोफेसर के रूप में काम किया। लेकिन गरीब और वंचित समुदाय के बच्चों की जिंदगी बदलने के उद्देश्य से उन्होंने नौकरी छोड़ने का निश्चय किया। नौकरी के दौरान उन्हें प्रोजेक्ट्स के सिलसिले में अक्सर गांव देहातों में जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें यह देख कर बड़ा दुख होता था की गांव के बच्चों की शिक्षा का कोई विशेष प्रबंध नहीं है और ज्यादातर बच्चे अनपढ़ ही रहकर अपनी पूरी जिंदगी खेतों में काम करते या मजदूरी करते बिता देते हैं। वह इन बच्चों के लिये कुछ करना चाहते थे और इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये उन्होंने वर्ष 2001 में श्लोक पब्लिक फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट की नींव रखी। इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करना है।