हाकी खिलाड़ी प्रीति के माता पिता दिहाड़ी-मजदूरी कर चला रहे परिवार
कालूपुर | भारतीय जूनियर महिला हाकी टीम की डिफेंडर प्रीति के घर में उसके माता-पिता की दिहाड़ी-मजदूरी के रुपयों से चूल्हा जलता है। प्रीति ने जब वर्ष 2012 में हाकी खेलना शुरू किया तो उसके माता-पिता के पास उसे भरपूर डाइट खिलाने तक के रुपये नहीं थे। प्रीति के पिता शमशेर और मां सुदेश निर्माण स्थलों पर दिहाड़ी-मजदूरी करते हैं लेकिन आज उनकी बेटी हाकी से देश का मान बढ़ा रही है। आज प्रीति जूनियर टीम की शान है। कालूपुर चुंगी के पास एक कमरे के मकान में रहने वाले प्रीति के पिता शमशेर ने बताया कि आज से 10 साल पहले अपनी सहेलियों को हाकी खेलते देख प्रीति ने भी उनसे कोचिग दिलाने का आग्रह किया था लेकिन गरीबी के आगे वे इतने सामर्थ्यवान नहीं थे कि बेटी को खिलाड़ी वाली डाइट तक दे पाते। उनके पास उसे हाकी स्टिक, ड्रेस दिलाने तक के रुपये नहीं थे। वे रोजाना चाय बनाने के लिए आधा किलो दूध लेते थे। उनके सामने दुविधा थी कि उस दूध में से चाय बनाएं या बेटी की जरूरतें पूरी करें लेकिन उन्होंने द्रोणाचार्य अवार्डी कोच प्रीतम सिवाच के पास 25 दिसंबर, 2002 को जन्मी बेटी को हाकी सीखने के लिए भेजना शुरू किया। 10 साल की मेहनत के बाद आज प्रीति भारतीय जूनियर टीम का चमकता सितारा हैं। वह दक्षिण अफ्रीका में महिला जूनियर हाकी विश्व कप में खेल रही हैं। प्रीति के पिता की गरीबी और बदहाली देखकर प्रीतम सिवाच ने कभी उनसे कोचिग फीस नहीं ली। उल्टा खेल के बाद प्रीति को दूध और केले की व्यवस्था की ताकि उसकी डाइट में कमी न रहे। इसके अलावा प्रीतम ने दूसरे जिलों में आयोजित प्रतियोगिताओं में जाने-आने और खाने के लिए लिए प्रीति की आर्थिक मदद की। अब आठ माह पहले ही रेलवे ने प्रीति को नौकरी दी है। शमशेर ने बताया कि बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक कमरे का टूटा-फूटा मकान बनाया है। इसी मकान में आज भी उनकी पत्नी सुदेश, बेटा विक्रम, बेटी प्रीति रहते हैं। इसी कमरे में प्रीति के विभिन्न प्रतियोगिता में जीते हुए 30-32 मेडल रखे हैं। जगह नहीं होने के कारण इन्हें एक बक्से में रखा गया है। प्रीति का भाई बिजली मैकेनिक का काम सीख रहा है। बेटे के आगे नहीं बढ़ पाने के बाद शमशेर ने बेटी को बेटे की तरह आगे बढ़ाने का फैसला लिया था और पिता के उस फैसले को सही साबित भी किया। भारतीय महिला हाकी टीम की स्टार खिलाड़ी नेहा गोयल, निशा और भारतीय पुरुष टीम के सदस्य सुमित कुमार के परिवार भी बेहद गरीब थे लेकिन इन खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर परिवार की गरीबी दूर करने के साथ ही तिरंगे का मान भी बढ़ाया है। अब प्रीति भी इन्हीं के नक्शे कदम पर चल रही हैं। प्रीति का परिवार बेहद गरीब है। उसके माता-पिता मजदूरी करते हैं लेकिन वह प्रतिभा की धनी हैं। अपनी मेहनत के बल पर आज वह जूनियर महिला हाकी टीम में खेल रही हैं। वह जूनियर टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं। उसका भविष्य सुनहरा है। वह भविष्य में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन खेल दिखाएगी |