एक साधक की पहचान ‘सद्गुणों’ का ‘मिश्रण’ : भारती
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान देहरादून की ओर से रविवार को दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का विशाल पैमाने पर आयोजन किया गया। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘सद्गुरू आशुतोष महाराज ’ की असीम कृपा से ‘साध्वी विदुषी ऋतम्भरा भारती’ ने बताया कि पूर्ण सद्गुरू से ‘ब्रह्मज्ञान’ की प्राप्ति के बाद शिष्य का अपने गुरू के साथ प्रार्थना के माध्यम से प्रगाढ़ सम्बन्ध जब बन जाता है तो शिष्य को सदैव अपनी प्रार्थना उन तक पहुंच जाने का स्पष्ट आभास होने लगता है और सद्गुरू उसकी पुकार को सुनकर अपनी अनुकम्पाओं से उसे नवाज़ते रहते हैं। यदि शिष्य की प्रार्थना सच्ची है, लोक कल्याणकारी है, निष्काम है तो गुरू द्वारा अवश्य ही सुनी जाती है। प्रार्थना में भावना का ही अधिक महत्व होता है, भारी- भरकम शब्दावली ही आवश्यक नहीं है। एैसी प्रार्थना के लिए ही कहा गया- ‘चींटी के पग नूपुर बाजें, सो भी साहिब सुनते हैं। महापुरूष कहते हैं कि शिष्य को प्रार्थना के बीज बोते रहना चाहिए, न जाने कब ‘गुरू- कृपा’ रूपी वर्षा होने लगे और बीज फलीभूत होने लग जाएं। रविवारीय साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का शुभारम्भ मन भावन भजनों की प्रस्तुति के साथ किया गया। क्रार्यक्रम में साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती ने दिव्य प्रवचन करते हुए भक्तजनों को बताया कि पूर्ण सत्गुरू अपने शरणागत् समस्त शिष्यों पर अपनी करूणा, अपनी कृपा एक समान लुटाया करते हैं। साध्वी ने शिष्य के उन अनेक गुणों को भी रेखांकित किया जिनके होने से उसके गुरू प्रसन्न हुआ करते हैं, उन्होनें महर्षि रमण तथा उनके शिष्यों से सम्बन्धित अनेकों दृष्टान्त रखतें हुए साधक की शास्त्र- सम्मत व्याख्या भी प्रस्तुत की और इससे भक्तों का मार्गदर्शन भी किया। प्रसाद वितरण करके साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।