रामबाबू का मजदूरी से एशियन गेम्स में कांस्य पदक जितने तक का सफर, जानिए खबर
सोनभद्र | सोनभद्र जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर, राबर्टसगंज कोतवाली क्षेत्र के बहुअरा गांव है। यहीं राम बाबू का घर है। यहां जाने के लिए बमुश्किल पांच फीट चौड़ी सड़क है। मानो पगडंडी हो। रामबाबू के पिता छोटे लाल पेशे से मजदूर हैं। मां मीना और छोटे लाल दोनों मनरेगा के तहत मजदूरी करते हैं। पिता ने कहा, ”हम तो मेहनत मजदूरी करते रहे। बेटे ने आज नाम ऊंचा कर दिया। उसकी मां गांव में आसपास के लोगों से दूध लेकर खोवा बनाती, उसे मधुपुर मंडी में बेचकर बेटे को खर्च भेजती रही। हमने बेटे के ख्वाब पूरे करने के लिए उसे कभी मना नहीं किया। उसने गरीबी देखी है। ”मनरेगा में राम बाबू ने काम किया”, राम बाबू द्वारा, ”कोरोना के दौरान सभी लोग अपने घर आ गए थे। लॉकडाउन लग गया था। हमारे जॉब कार्ड पर बेटे ने मजदूरी की। गड्ढा खोदने और मिट्टी निकालने का काम किया। राम बाबू ने पैदल चाल के रूप में खिलाड़ी की पहचान बनाया, राम बाबू ने मंजू रानी के साथ मिलकर एशियन गेम्स में सफलता हासिल की थी इसमे इनको कांस्य पदक मिला था |