शहरो की रेडीमेड शादिया और गाँवो की पर्मानेंट
हमारे देश में जहा एक ओर शादी का वातावरण और रस्म पुराने समय के जैसा उसी तरह महक बिखेरी हुई है वहीँ दूसरी तरफ शादी का रस्म और वातावरण केवल खानापूर्ति रह गया है.देश के गाँव वहीँ छोर है जहां शादी का रस्म और वातावरण दोनों को आज के समय में बाधे हुए है.वहीँ दूसरा छोर शहर है जो शादी के इन रस्मो को रेडीमेड बनाते जा रहे है.गाँव में शादी के समय में जिस घर में शादी का माहोल होता है वह शहर के लिए सिखने के बराबर है.जहां शादी के समय में घर का हर रिश्तेदार एक साथ इक्कठा होते जो रिश्ते के मीठास को आगे बढ़ाते है.साथ ही साथ एकता का ऐसा परिचय भी देती है जो शहरी क्षेत्र के लिये एक सबक है.शहरो की शादियों में एक दूसरे से हाई फ़ाई दिखने के चक्कर में शादी से जुडी सारी रस्मे रेडीमेड बनता दिखता है जोकि रिश्ते को कमजोर बनाती है देश के दोनों छोर यानि गाँव और शहर को एक समानता में लाने के लिए शादी युक्त्त वातावरण का ही सहारा बेहतरीन होगा.
अरुण कुमार यादव (सम्पादक )