ईमानदार पत्रकारो पर लगी राजनीति नज़र
अरुण कुमार यादव ( सम्पादक ) देश में जहा लोगो की शुरुआत पत्रकार द्वारा किये मेहनत से होती है अर्थात मीडिया द्वारा अख़बार के माध्यम से देश की जनता को उनके अधिकार , सामाजिक घटना चक्र , के साथ साथ देश में फैले भ्रष्टाचार का उजागर करती है | जिस पर जनता फिर अपनी कहानी लिखती है | परन्तु वर्तमान समय में जिस तरह से पत्रकारो पर हमले हो रहे है यह देश के लिए अच्छा संकेत नही है | बिहार में जिस तरह से सारेआम पत्रकार रंजन की गोली मार कर हत्या हो जाती है यह समझने के लिए…
समाज का असली चेहरा ….
अरुण कुमार यादव – सम्पादक समाज में रह कर समाज के असहाय लोगो को मदद और सम्मान देने की परम्परा जिस तरह से विलुप्त हो रही है यह एक सोचने का विषय है | इस वाक्यांश को ऐसे ही नही बोल रहा हूँ क्यों की ऐसी सच्चाई जानने के लिए जब रात्रि के समय सड़को पर असहाय लोगो से मिलने निकला तो कहि न कहि समाज रूपी सच का पर्दा सामने आने लगा | इस सफर के बातचीत के दौरान समाज का असली चेहरा भी देखने को मिला | इस दौरान मुलाक़ात वृद्ध व्यक्ति शम्भु जी से हुई बातचीत…
राजनेताओ को कब दिखेगी जनता
देश की बात हो या देश के कुछ राज्यो की , कही न कही राजनेता जनता को दरकिनार कर अपने ऊपर राजनीतिक स्वार्थ को हावी करते आ रहे है | उदाहरण के तौर पर जिस तरह से अरुणांचल में राजनीतिक स्वार्थ वस तख्ता पलट हुआ इसमें भाजपा के साथ साथ कांग्रेस भी उतनी ही जिम्मेदार है | विधायको का बागी होना और बागियों को हाथ थामना यह सभी कहानी जनता को चिड़ाने के लिए काफी है | ऐसे ही वर्तमान समय में उत्तराखण्ड की स्थिति भी यही कहानी बयान कर रही है | यहा पर भी विधायको का बागी होना…
ना रखना कदम इस राह पर तुम …..
आज नशा समाज में जिस तरह से अपनी मुंह फैला रही है वह देश के युवा वर्ग के लिए घातक सावित हो रही है | विदित हो की देहरादून की एक संस्था द्वारा नशे को लेकर देहरादून शहर के स्कूल कालेजो के छात्र छात्राओ पर एक सर्वे किया गया | एक हफ्ते तक चले इस अभियान में एक चौकाने वाला तथ्य सामने आया जिसमे नशे को लेकर छात्र छात्राओ पर सर्वे के मुताविक 70% ऐसे छात्र छात्राएं होते है जो स्कूल के 9वीं और कालेजो के शुरूआती दौर में आने पर नशे रूपी जाल में फस जाते है | संस्था…
केजरीवाल पर स्याही , अंडे , जूते फेकने का सच
जिस तरह से कुछ वर्षो से केजरीवाल पर जूते,स्याही,अंडे के माध्यम से राजनीतिक का खेल खेला जा रहा है वह कितना कामयाब हुआ यह आप के सामने है | विरोधी पार्टिया देश की राजनीतिक क्षेत्र को इतना निचले स्तर पर ला देंगे इसकी कल्पना भी नही की जा सकती | जिस राज्य में भ्रष्टाचार रोक कर जारी बजट से भी कम बजट में ब्रिज का निर्माण किया गया हो उस राज्य के मुख्यमंत्री पर विपक्ष पार्टियों के इशारो पर स्याही फेका जाता है , जिस राज्य में पुराने पानी का बिल माफ करने के साथ साथ जहाँ तीस सालो तक…
राष्ट्रपति शासन बनाम सरकार शासन
उत्तराखंड में जिस तरह से राजनितिक उथल -पुथल चला और अंत में मामला कोर्ट तक पहुंचा अब तारीख पर तारीख का खेल कोर्ट द्वारा चल रहा है | लेकिन जिस तरह से उत्तराखंड की जनता राष्ट्रपति शासन को लेकर संतुष्ट दिख रही है वह राजनेताओ के लिए हैरान करने वाली बात है यदि राष्ट्रपति शासन और सरकार शासन की तुलना किया जाय तो जिस तरह से सरकारों द्वारा फिजूल खर्ची दिख रही थी वह राष्ट्रपति शासन में नहीं के बराबर दिख रही है एवं साथ ही साथ बिना दबाव के अधिकारियों का का कार्य करना एक अच्छी प्रकाष्टता दिखाई दे…
जरा मदद का हाथ तो बढ़ाये …
समय के साथ साथ समाज की इंसानियत रूपी सरोकार का अंत दिखता हुआ दिख रहा है | समाज का वर्तमान स्तर इतना नीचे गिर जाएगा ऐसा सोचा भी नही गया होगा | विदित को की कुछ समय से देहरादून की एनजीओ अपने सपने संस्था भूख ‘हर पेट में रोटी’ नामक अभियान शुरू किया है इस अभियान में संस्था उन असहाय लोगो को खाना खिलाती है जो सड़क पर भूखे ही सो जाते है | इसी अभियान के तहत समाज का वह रूप भी देखने को मिला जो समाज के प्रति सोचा नही जा सकता | इस अभियान के दौरान एनजीओ…
इस खेल में हार तो जनता रही है …
उत्तराखण्ड में खीचतान राजनीति के माध्यम से विकास का रथ रुकना राज्य के लिए सही संकेत नही है | जिस तरह से नेता अपने स्वार्थ के चक्कर में सरकार को स्थिर करने में लगे हुए वह राज्य की जनता के लिए शुभ संकेत नही है | दूसरी तरफ उतना ही जिम्मेदार सरकार भी है जो विकास रूपी पक्षपात का अमलीजामा कही न कही अपने ऊपर समावेशित किये हुए है | इस राजनीति रूपी सहमात के खेल में उत्तराखण्ड की जनता ठगा महसूस करने लगी है | राज्य को विकास चाहिए वह तभी सम्भव है जब सरकार पाँच साल स्थिर रहे…
एक दिन नही पूरे 365 दिन मनाया जाए महिला दिवस
पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया जाना क्या इतना भर से पूरे विश्व की महिलाओं का हक और सम्मान दिया जा सकता है जिस तरह से अंतराष्ट्रीय महिला दिवस आने पर संगठन, राजनीतिक पार्टियां और बुद्धजीवी अपने विचार और कार्यक्रम के द्वारा महिलाओं को हक, सम्मान और सुरक्षा दिलाने की बात करते है या सम्मान दिया जाता है। वह आप (समाज) के नजरिये से कितना अचम्भीत है। क्या महिलाओं के हक और सुरक्षा के साथ-साथ सम्मान की बात केवल एक दिन होनी चाहिये आप का जवाब होगा नहीं, तो हम क्यों महिलाओं के हक, सम्मान और सुरक्षा की बात एक…
आरक्षण , आरक्षण और केवल आरक्षण …..
देश में युवाओ को अपनी प्रतिभा पर विश्वास नही के बराबर है इसीलिए वह जातिगत आरक्षण को अपनाने के लिए इतने निचले स्तर तक चले जाएंगे यह एक सोचने युक्त विषय है | इसके जिम्मेदार हम खुद है जो देश के जातिगत आरक्षण के सिस्टम को आइना न दिखा कर उसको हमेशा प्रोत्साहित करने का काम करते आ रहे है | देश में अभी आरक्षण पर कुछ समय पहले बहस का भी दौर आया था पर राजनीतिक स्वार्थ इस पर ऐसी हावी हुई की वह दोबारा यह बहस उठ न सकी | देश से आरक्षण को समाप्त करने की शक्ति…