सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा के लिए दोषी कौन ?
हम सबके घरो के आस-पास कोई न कोई सरकारी विद्यालय या प्राइमरी विद्यालय तो होगा ही, परन्तु शायद ही मतदान करने के लिए मतदान दिवस के सिवा हम सबने उसकी तरफ देखा होगा, क्लेमेंट टाउन क्षेत्र में करीबन 15 से ज्यादा सरकारी विद्यालय अथवा प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन इन सबकी हालत देख कर लगता है, कि सरकार ने कोई योजना ही ना बनाई हो, सरकारी विद्यालयों के लिए | लेकिन गूगल करने पर पता चला, की सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मिल, शिक्षा का अधिकार जैसी योजनाओं पर हजारो करोड़ रु. खर्च हो चुका है, और ऐसा नही है कि…
आप की कलह से धूमिल हुई वैकल्पिक राजनीति की उम्मीद
जो घटनाक्रम इन दिनों आम आदमी पार्टी में चल रहे है | यकीनी तौर पर वह उनका अंदरूनी मामला है और नैतिक रूप से हमे उस पर लिखने बोलने का हक भी नही बनता | पिछले कई दिनों से खुद को रोके हुए था ‘आप की कलह’ पर सम्पादकीय लिखने से | क्यूंकि उम्मीद ये थी कि आज नही तो कल “आप” के वरिष्ठ नेता आपस में बैठकर मामले का हल निकाल ही लेंगे | पर अब जब मिडिया में ये खबरे आने लगी है की योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के अन्य असंतुष्ट नेताओ के साथ…
नदी या नाला (देहरादून की नदियों की व्यथा कथा)
इस बार की व्यथा कथा में है, देहरादून की नदियों की कहानी पहचान एक्सप्रेस के स्थानीय ब्यूरो चद्रशेखर की जबानी रिस्पना, बिंदाल, सोंग, टोंस, इन सबके पीछे नदी शब्द का प्रयोग करना भी बड़ा अटपटा लगने लगा है, जब भी आप और मैं इसके आस-पास से निकलते होंगे, तो हर बार इसे एक गंदे नाले की तरह ही देखते है | अज किसी 80 के धसक के बाद के जन्मे उत्तराखंड वासी को पूछे, और बोले की ये तीन कभी देहरादून के एक बड़े हिस्से को जलापूर्ति करते थे, और इनका पानी पूरी तरह साफ़ था, तो आपको अपनी बात…
शहरो की रेडीमेड शादिया और गाँवो की पर्मानेंट
हमारे देश में जहा एक ओर शादी का वातावरण और रस्म पुराने समय के जैसा उसी तरह महक बिखेरी हुई है वहीँ दूसरी तरफ शादी का रस्म और वातावरण केवल खानापूर्ति रह गया है.देश के गाँव वहीँ छोर है जहां शादी का रस्म और वातावरण दोनों को आज के समय में बाधे हुए है.वहीँ दूसरा छोर शहर है जो शादी के इन रस्मो को रेडीमेड बनाते जा रहे है.गाँव में शादी के समय में जिस घर में शादी का माहोल होता है वह शहर के लिए सिखने के बराबर है.जहां शादी के समय में घर का हर रिश्तेदार एक साथ…
भू – अध्यादेश,किसान और भारत सरकार
भूमि अध्यादेश किसानो के लिए एक ऐसा जंजाल है जो सही और गलत का निर्णय भी उनके लिए बेईमानी लगती है.देश में अनेक किसान ऐसे है जिनका सब कुछ लेदेकार केवल उनकी जमीन ही पूँजी सरीक है.यही किसान अपनी जमीन को बेचने या देश के विकास के लिए जमीन को देने में नही हिचकता परंतु किसान अपनी जमीन का सही हक चाहता है.इनसब पर गौर किया जाय तो किसानो की पूँजी ही उनकी एक मात्र जीवन का दर्पण है उनकी भूमि.मोदी सरकार द्वारा भू अध्यादेश तो आया लेकिन किसानो के लिए कितना हितकर होगा ये तो दूर की बात है पर उससे…
स्वच्छ्ता अभियान का आइकॉन समझे या देश का दुर्भाग्य
कूड़े बीनने वाले बच्चो को स्वच्छता अभियान का आइकॉन समझा जाय या देश का दुर्भाग्य समझा जाय . जिस तरह भारत सरकार अलग अलग अभियान प्रचार प्रसार के माध्यम से लोगो के बीच पहुचाती है ठीक उसी तरह ऐसे बच्चो के लिए अभियान क्यों नहीं देश की तरकी तभी होगी जब देश के भविष्य यानी बच्चो का भविष्य उज्जवल किया जाए . भारत सरकार और प्रदेश सरकार मिल कर इसके प्रति अभियान चलाये जिससे ऐसे बच्चो के भविष्य के साथ साथ उनके परिवार का भी भविष्य बनाया जा सके . ऐसे एक बच्चे का भविष्य सुधरना मतलब उनके पुरे परिवार…
आतंकवाद, इस्लाम और मासूम युवा
पूरे विश्व के लिये आतंकवाद एक ऐसी समस्या है जो ज़ड़ से जब तक समाप्त नहीं होगा एसे ही समाज के लिये शैतान के रूप मे बनी रहेगी.लगभग पूरा देश आतंकवाद से जुझ रहा है . आतंकी हमले की बात करे तो हाल ही में पाकिस्तान के पेशावर के एक स्कूल में आतंकियों ने जिस तरह से मासूमो पर आतंक फैलाया इसके बाद फ्रांस में एक साप्ताहिक पत्रिका के दफ्तर पर हमला कर आतंकियों ने दस पत्रकारों को मारा इतना ही नहीं अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक आतंकियों का आतंक बना हुआ है . जितने आतंकी संगठन है वे मासूम…