नेत्रदान : अधंकार से उजाले की ओर एक यात्रा….
लेखक(अंकित तिवारी) | भारत में नेत्रदान का महत्व केवल एक मानवीय कर्तव्य तक सीमित नहीं है; यह अंधकार से उजाले की ओर एक यात्रा है, जो जीवन की गुणवत्ता को नये सिरे से परिभाषित करता है। हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाए जाने वाले राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा का उद्देश्य समाज में नेत्रदान के प्रति जागरूकता फैलाना और इसे एक जन आंदोलन बनाना है। यह पहल 1985 में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी और तब से अब तक इसने लाखों लोगों की ज़िंदगी को रोशनी से भर दिया है।2024 के राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा की थीम, ‘मैं अब स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ’, इस महत्वपूर्ण कार्य के परिणाम को उजागर करती है। यह थीम उन लाखों लोगों के लिए एक आशा की किरण है, जो नेत्रहीनता के अंधकार में जीवन बिता रहे हैं। नेत्रदान एक ऐसा प्रयास है, जो किसी के जीवन में प्रकाश भर सकता है और उसे नया दृष्टिकोण दे सकता है। यह थीम हमें यह याद दिलाती है कि हम किसी के जीवन को पुनः संगठित करने में सक्षम हैं और यह हमारे द्वारा की गई छोटी सी पहल से संभव हो सकता है।नेत्रदान के प्रति लोगों की सोच में बदलाव लाना आवश्यक है। समाज में कई मिथक और भ्रांतियाँ हैं, जो नेत्रदान को एक चुनौती बना देती हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग सोचते हैं कि नेत्रदान से उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी, जबकि वास्तविकता यह है कि नेत्रदान से किसी अन्य व्यक्ति के जीवन में उजाला लाया जा सकता है। इसके लिए समाज में सही जानकारी और जागरूकता का प्रसार करना अत्यंत आवश्यक है।आज के वैज्ञानिक युग में नेत्रदान एक सुरक्षित और आसान प्रक्रिया है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी आँखों को निकालकर, उसे एक नेत्रहीन व्यक्ति को प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया केवल 24 घंटे के भीतर पूरी होनी चाहिए, और यह बिना किसी तकलीफ के की जाती है। नेत्रदान से न केवल एक व्यक्ति को, बल्कि कई लोगों को दृष्टि मिल सकती है, क्योंकि एक व्यक्ति की दोनों आँखों से दो अलग-अलग लोगों की ज़िंदगी को रोशन किया जा सकता है।यह पखवाड़ा हमें यह अवसर देता है कि हम अपने समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें और नेत्रदान के महत्व को आत्मसात करें। हमें अपने परिवार और समाज के अन्य सदस्यों को भी इस महान कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए।नेत्रदान का संदेश केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, जो इसके बारे में जानते हैं; इसे उन तक भी पहुँचाना चाहिए, जो इसके बारे में अनजान हैं। हमें अपने समाज में ऐसी जागरूकता फैलानी चाहिए, जिससे नेत्रदान एक सामान्य प्रथा बन सके और कोई भी नेत्रहीन व्यक्ति दृष्टि से वंचित न रहे। अंततः, ‘मैं अब स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ’ केवल एक थीम नहीं है; यह उस उजाले की ओर की यात्रा है, जिसे हम सभी को अपनाना चाहिए। नेत्रदान का यह प्रयास हमें न केवल दूसरों की मदद करने का अवसर देता है, बल्कि हमें एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में भी प्रेरित करता है। इसलिए, आइए हम सभी मिलकर इस प्रयास में शामिल हों और अपने समाज को एक नया दृष्टिकोण दें।
– इस लेख के लेखक अंकित तिवारी शोधार्थी, अधिवक्ता एवं पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि हैं