अपने आक्रोश को बनाया अपना हथियार बनीं पैरा ऐथलीट चैंपियन
कंचन लखानी ने अपने आक्रोश को अपना हथियार बना लिया। 4 सितंबर 2008 को हुए एक हादसे ने अचानक उनकी जिंदगी बदल कर रख दी। एक रेल हादसे में उनका हाथ कट गया और स्पाइनल इंजरी के चलते कमर से नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद वह निराशा में डूब गईं, उनके मन में आत्महत्या करने के खयाल आने लगे। एक दिन वह अपने जीवन के बारे में सोच रही थीं। उस समय उन्होंने अपने अवसाद से बाहर निकलकर अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला कर लिया। उन्होंने कड़े परिश्रम के बाद राष्ट्रीय स्तर की पैरा ऐथलीट बनकर 2017 में उन्होंने राष्ट्रीय पैरा ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते। जिसे दुनिया कमजोरी समझती थी, उसे उन्होंने चुनौती के तौर पर लिया और दुनिया के सामने एक उदाहरण बनकर सामने आईं। कंचन लखानी के मुताबिक 2008 से पहले वह रावल इंटरनैशनल स्कूल में प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पढ़ाती थीं, लेकिन निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी। हादसे में उन्होंने अपना एक हाथ खो दिया। स्पाइनल इंजरी की वजह से कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। जब होश आया तो उन्होंने खुद को हॉस्पिटल में पाया। जब पता लगा कि पूरी जिंदगी वीलचेयर पर रहना पड़ेगा तो वह अवसाद का शिकार हो गईं। अस्पताल से जब वह घर पहुंचीं तो अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थीं। जब भी वीलचेयर पर बैठाया जाता था तो वह रोने लगतीं। कंचन ने बताया, ‘मैंने करीब 5-6 साल तक अपने आप को एक कमरे में एक तरह से बंद रखा और बहुत कम समय ही परिवार के साथ बिताती थी। बाहर से मिलने के लिए आने वाले लोग व रिश्तेदार तरह-तरह की बात करते थे और सहानुभूति जताते, जो मुझे तानों की तरह चुभते थे, लेकिन परिवार ने मेरा साथ नहीं छोड़ा और हिम्मत बढ़ाते रहे। काफी साल बीतने पर सोचा कि ऐसी ही रोती रहूंगी तो जिंदगी काटना मुश्किल होगा और डिप्रेशन से निकलने के प्रयास शुरू कर दिए। खुद को चुनौती दी और ऐसा करने की ठानी जिससे दुनिया मुझे जान सके।’ इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू करने के साथ ही कविताएं लिखना शुरू किया और फैशन शो में भी भाग लिया। कंचन ने बताया कि उन्होंने आत्मचिंतन के बाद भविष्य में आने वाली परेशानियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार किया। सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेने के लिए मिशन जागृति से जुड़ीं और स्कूलों में जाकर बच्चों को जागरूक करने के साथ ही स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पर्यावरण बचाओ जैसे अभियानों का भी हिस्सा बनीं। कंचन कहती हैं कि जिसे दुनिया ‘सामान्य’ होना कहती है, उस जिंदगी में शायद यह उपलब्धियां नहीं मिलतीं, लेकिन रेल हादसे में जीवन को नई दिशा दी और बताया कि कैसे बेफिकर होकर जीते हुए अपने मुकाम को हासिल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि 2020 में पैरा ओलिंपिक होने वाले हैं। उसमें हिस्सा लेकर देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना कंचन का ख्वाब है।