कमीशन को समाप्त कर बेस्ट मैनेजमेंट गुरु बनी दिल्ली सरकार
‘आप’ की दिल्ली सरकार बनने से तब से अब तक के काम काज की समीक्षा हो तो जिस तरीके से योजनाओ को जमीन पर लाया जा रहा है उसकी तारीफ़ दबे जुबान विरोधी भी कर रहे है | जहाँ अन्य राज्य बजट का न होना रोना रोती है वही केजरीवाल सरकार दिल्ली में बजट को बचत के द्वारा जहाँ हजारो करोड़ो की योजनाओ से हजारो के शब्द को समाप्त कर के करोड़ो में ला कर योजनाओ को अंतिम रूप दे रहे है |जहाँ एक क्लीनिक भवन बनाने में करोड़ो खर्च होते थे जिसमे भ्र्ष्टाचार शामिल होता था वही अब कमीशन का खेल खत्म होने पर एवम् घिसी पिटी पुराने तरीको को समाप्त कर नए तकनीकी के माध्यम से उतने ही बजट में सौ से अधिक मोहल्ला क्लीनिक का शुभारंभ दिल्ली सरकार कर रही है |ऐसे ही परिवहन , आइटी , शिक्षा , के क्षेत्रो में भी कमीशनखोरी समाप्त कर नए तकनिकी माध्यम से बजट को बचत द्वारा कार्य कर दिल्ली सरकार अन्य राज्यो के लिए सीख बन रही है |
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यूपी मुरादाबाद के एक नौजवान ने साइकिलिंग नेशनल चैम्पियन बनकर सरकारी नौकरी पाने की होड मे अपनी आधी जिंदगी गवां दी,लेकिन उसे नौकरी नही मिली,
इसमे दोष सरकार का रहा या उसकी किस्मत का, ये तो खुदा ही जाऩे, फिलहाल आज वह एक गुम नेशनल चैम्पियन बनकर अपनी जिंदगी के बाकी दिन मुरादाबाद रेलवे स्टेशन के पीछे लाइन पार की सड़क किनारे साइकिलो मे पंचर जोडकर काट रहा है। इस चैम्पियन ने जिले स्तर से लेकर नेशनल लेवल तक साइकिलिंग रेस मे बुलंदियों को छुआ और दर्जनोँ मेडल प्राप्त किए लेकिन उसकी नौकरी पाने की जिद सरकारी सिस्टम में फंस गई , अभी भी उसका मोह भंग नहीं हुआ वह साइकिल प्रतियोगिताओं में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेकर अपना कल संवारने मे लगा है।
ऐसे मे सवाल यह उठता है कि सरकार आखिर ऐसे चैम्पियनों की सुद क्यो नही लेती, जिन्होने देश-प्रदेश का नाम रोशन किया ? कब सुधरेगा हमारा सरकारी सिस्टम ? कब ऐसे नेशनल चैम्पियनों को सरकारे नौकरी देकर उनके कल को संवरने का मौका देंगी ? आज भी देश की सड़कों पर कई नेशनल चैंपियन नौकरी ना मिलने पर अपनी दुर्दशा पर रोते हैँ अगर ऐसे ही नेशनल चैंपियनों की दुर्दशा देश में होती रही तो आने वाले दिनोँ मेँ चैंपियन बनकर देश प्रदेश का नाम रोशन करना कौन चाहेगा ?