नारायण का अनाथआलाय से गोल्ड मेडल तक का सफर , जानिये ख़बर
वह एक शारीरिक अक्षमता के साथ पैदा हुए। आठ साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। अगले 8 साल अनाथ आश्रम में गुजारे। वहां से निकलने के बाद अपना पेट पालने के लिए डीटीसी की बसें साफ कीं और सड़क किनारे ठेलों पर काम किया। उन्होंने वह हासिल किया जो किसी भी आम इंसान के लिए लगभग नामुमकिन है। ये मुश्किलें भी नारायण ठाकुर को रोक नहीं पाईं। जकार्ता में हुए पैरा एशियन गेम्स में उन्होंने पुरुषों की 100मीटर T35 में गोल्ड मेडल जीता। कभी उत्तर पश्चिमी दिल्ली के समयपुर बादली इलाके की झुग्गी बस्ती में रहने 27 वर्षीय नारायण की कहानी कठिनाइयों से लड़कर अपने लक्ष्य को हासिल करने की है। दिल्ली के एक स्टेडियम में एक पुरस्कार वितरण समारोह में नारायण ने कहा, ‘मैं बिहार में पैदा हुआ। उन्होंने कहा, ‘मैं क्रिकेट खेलना चाहता था लेकिन किसी वजह से ऐसा नहीं हो सका। मैंने अनाथ आश्रम इसलिए छोड़ा ताकि मैं अन्य खेल विकल्पों पर विचार कर सकूं।’ 2010 में जब ठाकुर ने अनाथ आश्रम छोड़ा तो परिवार को एक और मुसीबत का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘यह वह समय था जब समयपुर बादली की जिन झुग्गियों में हम रहते थे, उन्हें ढहा दिया गया था। तब उसके करीब ही शिफ्ट होना पड़ा। आर्थिक हालात ठीक नहीं थे, ऐसे में मेरे पास डीटीसी की बसें साफ करने और सड़क किनारे छोटे ठेलों पर काम करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था लेकिन खेल को लेकर मेरा जज्बा तब भी कायम था।’ दिल की बीमारी के चलते मेरे पिता को दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा। कुछ वर्षों बाद उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया और इसी बीमारी ने उनकी जान ले ली।’ उसने आगे कहा, ‘मैंने बसें साफ कीं, एक वेटर के तौर पर काम किया।’ ठाकुर को शरीर के बाएं हिस्से पर हेमेपेरसिस हो गया था। इस बीमारी में मरीज को ब्रेन स्ट्रोक के बाद शरीर के बाएं हिस्से में लकवा हो जाता है। नारायण के पिता प्लास्टिक फैक्टरी में काम करते थे। उनकी मौत के बाद मां के लिए अपने तीन बच्चों का लालन-पालन करना मुश्किल हो गया। ठाकुर ने कहा, ‘इसी समय मुझे दरियागंज के अनाथ आश्रम में भेज दिया गया ताकि मुझे भोजन के साथ पढ़ने का अवसर मिल सके।’ ठाकुर ने कहा कि वह हमेशा से ही खेल के शौकीन थे। क्रिकेट उनका पहला प्यार था। ठाकुर ने कहा कि उन्होंने अपने खेल पर काफी मेहनत की और कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने प्रदर्शन से लोगों को प्रभावित भी किया। इसके बाद जकार्ता खेलों में जाने का रास्ता तैयार हुआ। वह बड़े गर्व के साथ कहते हैं, ‘मैं देश के लिए जकार्ता में गोल्ड जीतकर काफी खुश हूं। मैं एशियन पैरा गैम्स या एशियाड में 100 मीटर में गोल्ड जीतने वाला इकलौता भारतीय हूं।’