पुरानी यादों को भुला चुके हैं श्रद्धालु, बदल गई केदारघाटी की तस्वीर , जानिए खबर
रुद्रप्रयाग। वक्त के साथ-साथ सब कुछ बदल जाता है। कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि केदारघाटी में इतनी बड़ी त्रासदी आने के बाद भी यहां की जनता अपने पैरों पर दोबारा खड़ी होगी, लेकिन आज केदारघाटी की तस्वीर बदल गई है। आपदा के बाद पांच वर्षों के अंतराल में लोगों ने आपदा की कड़वी यादों को पीछे छोड़ दिया है। पिछले वर्ष से बाबा केदार की डोली के केदार धाम की रवानगी के दौरान जिस प्रकार का उत्साह तीर्थ यात्रियों के साथ ही स्थानीय श्रद्धालुओं में देखने को मिल रहा है, उससे यही लगता है कि अब केदारघाटी के लोगों ने आपदा की यादों को पीछे छोड़ दिया है। एक बार फिर से उत्सव यात्रा में पहले जैसी रौनक देखने को मिल रही है। कहावत है कि दिन गुजर जाते हैं और यादें शेष रह जाती हैं। 16-17 जून 2013 को केदारनाथ त्रासदी का मंजर आज भी आपदा पीड़ितों के जेहन में कहीं न कहीं बसा होगा, लेकिन जिस प्रकार केदारघाटी की जनता ने भगवान केदारनाथ को विदा किया, उससे यही लग रहा है कि आपदा पीड़ित जनता आपदा की कड़वी यादों को पीछे छोड़कर फिर से नये सिरे से अपना जीवन जीना चाहती है। केदारघाटी की जनता की बाबा केदार से यही पुकार है कि आपदा का वो खौफनाक मंजर दोबारा देखने को न मिले और यहां के लोगों का रोजगार फिर से पटरी पर लौट आये। बृहस्पतिवार को जब बाबा केदार की डोली धाम के लिये प्रस्थान कर रही थी तो कई महिलाओं की आंखे नम हो गई। हो भी क्यों न। अगर किसी ने सबसे अधिक दुख सहा है तो वह केदारघाटी की ही महिलाएं हैं। वर्ष 2012 में ऊखीमठ और वर्ष 2013 में केदारनाथ जैसी भयावह आपदा झेलने वाली केदारघाटी की महिलाओं ने बाबा केदार की डोली को हंसी-खुशी केदारनाथ के लिये रवाना की। स्थानीय महिलाएं जहां मांगल गीत गा रही थी, वहीं कई महिलाएं ऐसी भी थी जो आर्मी की बैंड धुनों पर नृत्य कर रही थी। इन सब नजारों को देखकर यही लग रहा था कि केदारघाटी के लोगों में आपदा से पहला जैसा उत्साह एवं उमंग लौट आया है। स्थानीय व्यवसायियों के चेहरों पर भी मुस्कान देखने को मिली। होटल-लाॅज व्यवसायियों के पास पहले ही एडवांस बुकिंग आ चुकी हैं।