बद्रीनाथ धाम के खुले कपाट
बद्रीनाथ। भू-वैकुंठ श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट वैदिक मंत्रोचारण, विधि विधान व पूजा अर्चना के साथ ब्रह्ममुहूर्त में 4.30 बजे श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। अब आगामी छह माह तक भगवान बदरी विशाल की पूजा यहीं होगी। इस पावन दिन के लिए बद्रीनाथ मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। कपाट खुलने के दौरान पूरी बरदरीशपुरी भगवान बद्रीनाथ के जयकारों से गूंज उठी। श्रद्धालुओं में आस्था का उत्साह देखते ही बन रहा था। सेना के बैंड की धुन के और जयकारों के बीच कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू की गई। स्थानीय लोगों ने भजन गाकर पारंपरिक झूमैलो पर भी नृत्य किया। बदरीनाथ धाम में बीती आधी रात के बाद ही मंदिर में प्रवेश करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगनी शुरू हो गई थी। कपाट खुलते ही भगवान बदरी विशाल के जयकारों से बदरीनाथ धाम गूंज उठा। कपाट खुलने की प्रक्रिया तड़के तीन बजे से शुरू हुई। रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी अपने निवास स्थान से उद्वव जी को लेकर मंदिर के सिंहद्वार पर पहुंचे। इसी दौरान बामणी गांव के बारीदार भी नंदा देवी मंदिर से भगवान कुबेर को सिंहद्वार तक लेकर आए। मंदिर के प्रांगण में सिंहद्वार पर सुबह साढ़े तीन बजे प्रार्थना मंडप में पूजा कार्यक्रम शुरू किया गया। इसके बाद सुबह करीब साढ़े चार बजे मंदिर समिति के पदाधिकारियों, वेदपाठियों, हक हकूकधारियों की उपस्थिति में मंदिर के कपाट खोल दिए गए। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति, मेहता थोक, भंडारी थोक प्रार्थना कक्ष से लगे तालों को अपनी-अपनी चाबी से खोले। कपाट खुलने के बाद मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने गर्भगृह में जाकर इस वर्ष की पूजाएं शुरू की। साथ ही उद्धवजी व कुबेरजी को भगवान बदरी विशाल के साथ स्थापित कर दिया गया। इससे पहले गत दिवस आद्य गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गाडू घड़ा (तेल कलश) यात्रा के साथ उद्धव जी व कुबेर जी की उत्सव डोली भी रविवार को योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर से बदरीनाथ धाम पहुंची थी। सुबह कपाट खुलने के बाद दोनों डोलियों को गर्भगृह में विराजित किया गया। आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी को परिक्रमा स्थल स्थित उनके स्थान पर रखा गया। गाड़ू घड़े को भी गर्भगृह में रखा गया। इस घड़े में मौजूद तिल के तेल से भगवान बदरी विशाल की महाभिषेक व अभिषेक पूजा के दौरान उनके शरीर पर लेपन किया गया। शीतकाल के दौरान भगवान बदरी विशाल के साथ मौजूद रही मां लक्ष्मी को कपाट खुलने के बाद मंदिर परिक्रमा स्थल स्थित लक्ष्मी मंदिर में लाया गया। साथ ही श्रद्धालुओं को अखंड ज्योति के दर्शन कराए जाए। पहले दिन विशेष प्रसाद के रूप में शीतकाल में भगवान पर लगाए गए एकमात्र अंगवस्त्र घृत कंबल ऊन की चोली को श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिया गया।