बाईपास सर्जरी की मदद से बचाई ट्रिपल वेसल रोग से ग्रस्त मरीजों की जान
हल्दवानी। उत्तर भारत के अग्रणी सुपर स्पेशियलिटी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं में से एक ‘‘मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हास्पीटल, पटपडगंज’’ ने चुनौतिपूर्ण बाईपास सर्जरी की मदद पूर्व उनकी पूरी जांच की गई। एंजियोग्राफी से पता चला है कि उन्हें गंभीर ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी रोग है। कार्डिएक सर्जनों की टीम ने तुरंत सीएबीजी सर्जरी करने का फैसला किया जिसे टोटल आर्टरी रिवैस्कुलराइजेशन के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि यह सर्जरी तकनीकी रूप से बहुत ही कठिन है और ज्यादातर कार्डिएक केन्द्रों पर यह सर्जरी नहीं की जाती है। इससे पहले कई कार्डिएक सेंटर ने मरीज की यह सर्जरी नहीं की। मैक्स हास्पीटल, पटपडगंज के अनुभवी एवं दक्ष कार्डिएक सर्जनों को इस सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल है और वे नियमित रूप से 50 साल से कम उम्र के वैसे मरीजों में यह सर्जरी करते हैं जिन्हें बाईपास सर्जरी की जरूरत होती है। चिकित्सकों की टीम ने हार्ट – लंग मशीन का इस्तेमाल किए बगैर बीटिंग हार्ट सर्जरी की नवीनतम तकनीक की मदद से सर्जरी की। सर्जरी के बाद तीन दिन के भीतर मरीज की हालत स्थिर हो गई और मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी रोग से ग्रस्त अनेक मरीजों का हाल के दिनों में सफलतापूर्वक उपचार किया गया है। इस संवाददाता सम्मेलन में इस जानलेवा स्थिति से ग्रस्त मरीजों के इलाज के बारे में अध्ययन रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई। संवाददाता सम्मेलन में झुशल करकोटी, गुड्डू बेग, वंश गोपाल अग्निहोत्री, प्रयाग दत्त पांडे और भुवन चंद्र त्रिपाठी भी मौजूद थे जिन्होंने अपने रोग एवं उपचार के बारे में संवाददाताओं को बताया। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे उन्नत देशों में भी ऐसी सर्जरी की सफलता दर 15-20 प्रतिशत है। डॉ. भुयान ने बताया कि हालांकि युवा मरीजों (जिनकी उम्र 45 वर्ष से कम है) में ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी रोग (टीवीसीएडी) आम है। खराब जीवन षैली के कारण इस रोग का प्रकाप बढ़ रहा है। उम्र बढ़ने एवं पारिवारिक इतिहास के अलावा, सिगरेट अधिक पीने, कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर, उच्च सिस्टोलिक रक्तचाप आदि कारणों से एथरोस्क्लेरोसिस का जोखिम करीब 90 प्रतिशत तक बढ़ता है। ऐसी स्थितियों के बारे में जागरूकता पैदा करने की बहुत अधिक जरूरत है क्योंकि ऐसी स्थितियों में समय पर चिकित्सकीय उपाय करने काफी मरीजों की जान बचाई जा सकती है और उन्हें विकलांगता से बचाया जा सकता है। मंझोले एवं छोटे शहरों में भी ऐसे मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया है।