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Sunday, November 17, 2024

डा चतुर्वेदी द्वारा स्वामी राम तीर्थ परिसर स्थित लाइब्रेरी में पुस्तक भेट किया -

Friday, November 15, 2024

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Tuesday, November 12, 2024

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ब्रिटिशकालीन ऐतिहासिक इमारत विलुप्ति के कगार पर, जानिए खबर

अल्मोड़ा। ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने की बात तो राज्य में आती-जाती सरकारों द्वारा खूब की जाती हैं लेकिन अल्मोड़ा में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की ब्रिटिशकालीन ऐतिहासिक इमारत शासन-प्रशासन की बेरूखी के चलते बदहाल स्थिति की ओर बढ़ती जा रही है। 112 वर्ष पूर्व इंडो-यूरोपियन शैली में निर्मित इस भवन के संरक्षण के लिए शीघ्र कारगर उपाय नहीं किए गए तो यह शैली विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाएगी। लक्ष्मेश्वर अल्मोड़ा में स्थित शिक्षा की अलख जगाने वाला जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) का इंडो-यूरोपियन शैली वाला प्राचीन भवन जो उपेक्षा की छांव में जीते हुए अतीत की याद दिलाता है, किंतु जिस कदर यह इमारत जर्जर हालात में पहुंचा दी गई है, ऐसे हालातों में इंडो-यूरोपियन शैली विलुप्त हो जाएगी। कुमाऊं में इंडो-यूरोपियन शैली के प्राचीन गिने-चुने भवनों में से एक अल्मोड़ा के पश्चिमी ढलान पर लक्ष्मेश्वर में स्थित है, जो अंग्रेजी हुकूमत के दौरान सन 1906 में बना। वर्तमान में डायट परिसर के नाम से चर्चित यह इमारत शुरू से शिक्षा की अलख जगाने का केन्द्र रहा। इमारत की विशिष्ट निर्माण शैली आज भी लोगों का ध्यान खींच लेती है। इसके इर्द-गिर्द देवदार, तुन व अन्य वनस्पतियां इसके आकर्षण को बढ़ाती हैं। यह दीगर बात है कि संरक्षण के लिए शासन व प्रशासन का ध्यान ही नहीं जाता। परिसर के मुख्य भवन के साथ-साथ चार बड़े छात्रावास, प्रधानाचार्य-शिक्षक आवास व छात्रावास से लगे भोजनालय हैं। भवनों की स्थापत्य कला देखने लायक है। पत्थर की चिनाई एवं छिलाई अद्भुत है और भवन मजबूती की मिशाल देता है। इसमें प्रयुक्त लकड़ी में नक्काशी देखने व संरक्षण योग्य है। अत्याधुनिक उपकरणों के बिना भी यह भवन वातानुकूलित सरीखे हैं। यह विडम्बना ही है कि देखरेख, संरक्षण व जीर्णोद्धार के अभाव में यह खूबसूरत इमारत अपनी दुर्दशा पर आसूं बहा रही है। इमारतों की बहुमूल्य लकड़ी बर्बाद हो रही है। भवन में कहीं छत टूट गई, कहीं दीवार तो कहीं रहने लायक नहीं है। यह प्राचीन भवन अपनी अद्भुत कला को बिखेरेगा, बशर्ते इसका जीर्णोद्धार हो, अन्यथा मौजूदा हालात में वह दिन दूर नहीं जब भवन के साथ अनूठी स्थापत्य कला विलुप्त हो जाएगी। इधर पुराविद् कौशल किशोर सक्सेना बताते हैं कि इंडो-यूरोपियन शैली में चैखट वर्तमान प्रचलन की तुलना में दोगुने ऊंचे होते हैं। दरवाजे व खिड़कियां मेहराब तर्ज की होती हैं। कमरों में समुचित प्रकाश व्यवस्था के साथ यह वातानुकूलित होते हैं। पत्थरों की मजबूत चिनाई के साथ छत त्रिशूलनुमा होती है।

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