राज्य आंदोलनकारियों को बड़ा झटका, 10% के क्षैतिज आरक्षण असंवैधानिक घोषित
उच्च न्यायालय ने सरकार और राज्य आंदोलनकारियों को बड़ा झटका देते हुए सरकारी सेवा में दस प्रतिशत के क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। बुधवार को न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया। इससे पहले खंडपीठ में मत विभाजन होने के कारण इस मामले में फैसला नहीं हो पाया था। इसके बाद यह मामला एकल पीठ के पास पहुंचा था और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकल पीठ ने भी करीब तीन महीने पहले सुनवाई पूरी करने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था। सरकारी सेवा में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का तत्कालीन कांग्रेस सरकार काफैसला विवाद में आने के कारण उच्च न्यायालय पहुंचा था। इसमें राज्य आंदोलनकारियों की सीधी नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। इस बीच राज्य आंदोलनकारियों की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि सरकार ने दो अलग-अलग शासनादेश जारी कर राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवा में 10% का क्षैतिज आरक्षण दिया है। इसी के तहत उनको नियुक्तियां दी जा रही हैं। हाइकोर्ट ने बुधवार को सुनाए गए अपने फैसले में क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। खंडपीठ में जजों ने दी थी अलग-अलग राय इस प्रकरण खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई तो उसमें दोनों न्यायमूर्तियों की राय अलग-अलग होने पर मामला मुख्य न्यायाधीश को रेफर कर दिया गया था। खंडपीठ के न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया का मत था कि राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देना असंवैधानिक है। इस पीठ के न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने आरक्षण को विधि सम्मत माना था। मत विभाजन होने के कारण मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ ने मामला तीसरी बेंच को रेफर किया था। सरकार के सामने आंदोलनकारियों को मनाने की चुनौती क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक ठहराए जाने से सरकार और राज्य आंदोलनकारियों को बड़ा झटका लगा है। सरकार की ओर से राज्य आंदोलन में आंदोलनकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका का जिक्र करते हुए उनके लिए क्षैतिज आरक्षण को सही ठहराया गया था। ठीक गैरसैंण सत्र से पहले यह फैसला सामने आने से सरकार के सामने अब मायूस आंदोलनकारियों को मनाने की चुनौती भी होगी। राज्य आंदोलनकारी भी इस मामले को अब सरकार के पाले में खिसका रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी राजेंद्र बिष्ट का कहना है कि सरकार इस मामले को सदन में लेकर आए और इस पर कानून बनाए।