राष्ट्रपति शासन पर केंद्र से कोर्ट ने मांगा जवाब
देहरादून/नैनीताल। उत्तराखंड में धारा 356 का प्रयोग कर राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र सरकार के निर्णय को निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी है। रावत की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकल पीठ ने केंद्र सरकार से मंगलवार तक जवाब मांगा है। मामले की सुनवाई मंगलवार को सुबह दस बजे फिर होगी। हरीश रावत की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की। इस दौरान केंद्र की ओर से असिसटेंट सोलिस्टर जनरल राकेश थपलियाल भी कोर्ट में मौजूद रहे। बहस के दौरान सिंघवी ने बिहार में रामेश्वरनाथ और कर्नाटक में एसआर बोमई केस का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठों के आदेश है कि सदन में सरकार के बहुमत का फैसला होगा। केंद्र सरकार ने उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार को गिराने और बागियों को बचाने की मंशा पूरी करने के लिए धारा 356 का दुरुपयोग किया। उन्होंने कहा कि हरीश रावत सरकार का फ्लोर टेस्ट होथा था, लेकिन असंवैधानिक तरीके से सरकार को बर्खास्त किया गया। बागियों को विधानसभा अध्यक्ष ने सुनवाई को पूरा मौका दिया था। हरीश रावत के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि बागी विधायक चार्टेड प्लेन और बस में भाजपा एमएलए के साथ पब्लिक डोमेन में दिखे। इसके बावजूद बगावत की बात से इंकार किया जा रहा है। ऐसे में इन विधायकों की सदस्यता खत्म करना उचित कदम है। उन्होंने कहा कि बागियों की सदस्यता खत्म होने के बाद अब राज्य विधानसभा में विधायकों की संख्या 60 की रह गई है। हरीश रावत का बहुमत साबित होना तय था, इसलिए जबरन राज्य में राष्ट्रपति शासन थोपा गया। यह राष्ट्रपति शासन अब तक का सबसे खराब उदाहरण है। केंद्र सरकार ने शक्तियों को दुरुपयोग किया है। सिंघवी ने आज या कल बहुमत साबित करने का मौका देने के लिए निर्देशित करने, राष्ट्रपति शासन संबंधी आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। वहीं, केंद्र के अधिवक्ता ने काउंटर फाइल करने के लिए 10 दिन का समय मांगा।