शिक्षा विभाग के खिलाफ शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा नेखोला मोर्चा
देहरादून। शिक्षिका उत्तरा बहुगुणा ने सोशल मीडिया पर एक बार फिर शिक्षा विभाग और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है भ्रष्टाचार की चक्की में पीसने के बाद मुझे ईमानदारी और अनुशासन पूर्वक नौकरी करने के बाद भी मुख्यमंत्री द्वारा सांत्वना देने के बजाए अपमानित किया जाता है। मेरे साथ-साथ मेरे बच्चों को भी आर्थिक हानि पहुंचाकर मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार से ईमानदारी की उम्मीद मैं कर नहीं सकती और बेईमानी के आगे मैं झुक नहीं सकती। उत्तरा बहुगुणा ने फेसबुक पोस्ट में अपनी पीड़ा लिखी है। उनका कहना है कि शिक्षा विभाग उत्तरकाशी में 17 जुलाई 2018 को खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय नौगाँव में मेरी लिखित और मौखिक जाँच होने के बाद, मेरे द्वारा अपना पक्ष रखते हुए पच्चीस छब्बीस पत्र जाँच हेतु दिए गए थे, जो कि नौगाँव कार्यालय द्वारा दो दिन के बाद जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय उत्तरकाशी को भेज दी गई थी। लेकिन छ माह व्यतीत हो जाने के बाद उस पर कोई कार्रवाई किए बिना ही पहले मुझे डाक द्वारा नोटिस भेजे गए, और अब अखबार के माध्यम से नोटिस दिया जा रहा है, जिसमे अपना पक्ष रखने को कहा गया है, मैं अधिकारियों को अवगत करा दूँ कि मेरे द्वारा अब भी अपना पक्ष उन्ही पत्रों को देकर रखा जाएगा, जो उनके पास माह जुलाई में रखा गया है। उनका कहना है कि मेरे द्वारा तीन बिन्दुओं पर जाँच करने का आग्रह किया गया है। नंबर वन जब मेरे पूर्व रा0 प्रा0 विद्यालय में माह अप्रैल मई में छात्र संख्या शून्य थी, तो माह जून में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान बंद विद्यालय में छात्र संख्या दस से कम कैसे से प्रवेश हो गए। और माह जून में बिना काउंसलिंग के मेरा समायोजन एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में कैसे किया गया। नंबर दो जब मुझे विद्यालय की जाँच पड़ताल किए बिना ही दूसरे विद्यालय में भेजा गया, तो उक्त विद्यालय में माह जुलाई में जाने के बाद दूसरी अध्यापिका कैसे नियुक्त की गई। नंबर तीन बिना छात्र संख्या विहीन उक्त विद्यालय में जब दो साल तक अध्यापिका और शिक्षामित्र को वेतन दिया जाता रहा, तो मेरी स्च्ब् उन्नीस माह तक किस आधार पर रोकी गई। इनके अतिरिक्त मैं 2015 से विभाग द्वारा मेरे साथ किए गए अन्याय की जाँच करवाने के संबंध में शिक्षा सचिव से लेकर शिक्षा निदेशक और शिक्षामंत्री को दिए जाने वाले प्रार्थना पत्रों की स्वीकृत की गई प्रति विभागीय अधिकारियों को सौंपी गई है। और पहले भी सौंपी गई थी, उच्च अधिकारियों द्वारा आदेश मिलने के बाद भी मुझे न्याय नहीं मिला। अब मुझे नौकरी से निकालने की धमकी क्या दे रहे हैं। मैं खुद ही ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के अधीन नौकरी नहीं करना चाहती हूँ।