समस्या बेरोजगारी की…
रोजगार व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकता है’ ईश्वर ने हमें मस्तिष्क और हाथ और पांव दिमाग की अनेक शक्तियाॅ दिल और भावना प्रदान की हैं जिससे कि उनका सदुपयोग किया जा सके और मनुष्य आत्मा-सिद्धि प्राप्त कर सके शायद हमारे जीवन का यही लक्ष्य हो। किन्तु यदि हमारे पास करने को कोई काम नहीं है यदि वर्णित शक्तियां का प्रयोग करने के लिए हमारे पास अवसर ही नहीं तो बहुत सी समस्याएं खडी हो जाती हैं। प्रथम हम अपनी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते द्वितीय कार्य की अनुपस्थिति में हमें शराफत करना आयेगा। इस प्रकार ऐसे समाज में जिसमें रोजगार की समस्या जटिल है उसमें निराशा अपराध और अविकसित व्यक्तित्व होंगे।भारत लगभग इसी प्रकार की परिस्थिति से गुजर रहा है। यहां बेरोजगारी की समस्या बडी जटिल हो गयी है। हमारे रोजगार कार्यालयों में करोडों लोग पंजीकृत हैं जिनको काम दिया जाना है। इनके अतिरिक्त ऐसे भी व्यक्ति है। और उनकी संख्या भी लाखों में है जो कि अपने को रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत नहीं करा पाते। भारत में बेरोजगारी की समस्या के कई कारण हैं पहला कारण हैं तेजी से बढती हुई जनसंख्या सरकार जिस अनुपात में जनसंख्या बढती है। उस अनुपात में नौंकरियों का सृजन नहीं कर पाती द्वितीय हमारी दूषित शिक्षा व्यवस्था ने भी समस्या को उलझा दिया है। जबकि लाखों की तादात में लोग रोजगार की तलाश कर रहे है। वहीं बहुत से उद्योग और संस्थाएं ऐसी हैं जहां पर उपयुक्त कार्य करने वालों की बहुत कमी है। हम रोजगार परक शिक्षा को प्रारम्भ नहीं कर पाए हैं और न उद्योग के साथ शिक्षा का तालमेल ही बैठा पाए हैं। बेरोजगारी का एकअन्य कारण अपर्याप्त औद्योगीकरण और कुटीर उद्योग-धन्धों की मंद प्रगति है। बडे-बडे उद्योगपतियों के निहित स्वार्थो के कारण कुटीर उद्योगों को ठीक प्रोत्साहन नहीं मिल पाता।