अब राष्ट्रपति पद भी राजनीति से अछूता नहीं रहा …
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का सबसे खास पहलू यह है कि मोदी वहां से लिस्ट बनाना शुरू करते हैं जहां पर कयासों की सूची समाप्त होती है। राष्ट्रपति पद के लिए जितने नामों पर पिछले कुछ महीनों से माथापच्ची चल रही थी, उनसे इतर एक नाम देकर मोदी ने एकबार फिर लोगों को चैंका दिया है और यह नाम है बिहार के राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के नेता रामनाथ कोविंद का. कोविंद कम बोलने वाले शालीन चेहरे हैं. विवादों से नाता न के बराबर रहा है. दलित हैं और उत्तर प्रदेश के कानपुर से आते हैं. कोरी बिरादरी का चेहरा हैं जो कि उत्तर प्रदेश में दलितों की तीसरी बड़ी आबादी है और बुंदेलखंड क्षेत्र में अपना खासा प्रभाव रखती है. कोविंद का नाम इसीलिए विपक्ष को एक झटका है. एनडीए के कुछ घटक, जो किसी अन्य नाम पर नखरे दिखा सकते हैं, शांति से कोविंद के नाम को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन सबसे बड़ा असमंजस विपक्ष में है. नीतीश सहित कई नेताओं के लिए कोविंद का विरोध आसान नहीं होगा. कोविंद के विरोध का मतलब एक दलित नाम का विरोध करना होगा. मायावती के लिए भी भले ही जाटव न होना एक बहाना हो लेकिन दलित होना जाटव होने से ज्यादा बड़ी राजनीतिक स्थिति है और मायावती अब इस स्थिति में कैसे विरोध करेंगी? यह उनके लिए सहज नहीं होगा. यही स्थिति नीतीश की है. नीतीश कोविंद के साथ नहीं खड़े होते हैं तो उनकी राजनीतिक विचारधारा से लेकर वोटबैंक तक गलत संदेश जाएगा.दलित राजनीति वाली दक्षिण की पार्टियां, वाम के गढ़ों में भी एक दलित नाम के विरुद्ध निर्णय कोई सुग्राह्य बात नहीं होगी. सबसे ज्यादा घिरी नजर आ रही है कांग्रेस. जगजीवन राम की विरासत वाली पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश के एक दलित के विरुद्ध खड़े हो पाना कोई कम चुनौतीभरा काम नहीं होगा. सूत्रों का कहना है कि एनडीए के दलित उम्मीदवार के जवाब में विपक्ष भी दलित कार्ड खेल सकता है। टीवी रिपोर्ट्स की मानें तो यूपीए की तरफ से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इन सभी से यही रास्ते निकलते है की अब
राष्ट्रपति पद भी राजनीति से अछूता नहीं रहा |