कलम से : औरत ही औरत की शत्रु……
“औरत ही औरत की शत्रु ”
“तू”मां बनकर बेटी के जन्म पर करती है तिरस्कार
सास बनकर अपनी बहू को देती है प्रताड़ना
जेठानी बनकर देवरानी पर अपना हुकुम चलाती है
तो कभी ननंद बनकर भाभी का तू करती है अपमान
बनके बहू अपने “प्रतिबिंब”को सबके आगे गिराती है!
मां बेटी और सास बहू, भाभी, ननद, देवरानी, जेठानी
रिश्ता चाहे जो भी हो हर हाल में टूटी “तू” ही है!
कैसी तेरी विडंबना है ये “तू “ही “तेरी” तकलीफ का कारण !
अब अंधकार से बाहर निकल कर, छोड़ दे “तू” दंभ का सफर!
तू एक शक्ति है यह तुझे जानना होगा
जग तूने बनाया यह तुझे मानना होगा,
तुझ में शक्ति है जग जीतने की,अब तुझे पहचानना होगा!
यह संसार बनाया तूने मानव को जग दिखाया तूने
जीना सिखाया सबको “तूने”अब सीखने की बारी तेरी!
अपनी शक्ति को पहचान,अपने रूप का कर सम्मान
ना कर “खुद”, “खुद” ही से “नफरत”!
पिछड़ रही ‘तू’ , खुद ही खुद से जल जल कर
ना जाने क्युं नफरत करके, जी रही “तू” मर मर कर!
उड़ना है उन्मुक्त गगन में सोच को तेरी बढ़ाना है
“खुद” ही “खुद” को टक्कर दे कर अब ना “खुद” को गिराना है!
गर औरत ही औरत मित्र बन जाए
तो संसार सारा स्वर्ग कहलाए!
तुझे सोच अपनी बदलनी होगी
नारी की इज्ज़त करनी होगी!
आज “खुद” का “खुद” से वादा कर
अपना सम्मान ज्यादा कर!
यह वादा है तुझसे मेरा,
तू “नया सवेरा” लाएगी, इक “नया इतिहास” रचाएगी!
प्रतिभा जवड़ा “प्रिया”