गन्दी राजनीति का कारण जनता भी तो….
अरुण कुमार यादव -संपादक |
देश की राजनीति इतनी गिर जायेगी इसका पुराने पीढ़ियों को अंदाजा नही था | हमारे देश की राजनितिक पार्टिया विकास के मुद्दे की जगह धर्म , जाती , आरक्षण एवम् लोक लुभावने वस्तुओ का लालच देकर अपनी राजनीति की दुकान चमकाये रहते है , चमके का भी क्यों नही हम जैसी जनता ही तो इनको बढ़ावा दे रहे है | देश में जब भी चुनाव का विगुल बजा है धर्म को लेकर नई नई घटनाएँ देश के सामने आ खड़ी होती है | धर्म के ठेकेदार मानो जनता को मुर्ख की उपाधि दे रखी है और जनता भी इसमें हमेशा अव्वल होना दिखना चाहती है | देश के राजनितिक पार्टिया जाती -धर्म पर बांटती रहती है और जनता बटती रहती है | अगर पुरे तथ्य को समझा जाए तो इसमें सारी गलती जनता की है | जनता देश को सोच कर वोट दे न की अपने निजी स्वार्थ को सोच कर | जिस दिन जनता विकास को मुद्दा बना लेगी उस दिन जाती , धर्म के आड़ में दुकान चलाने वाली पार्टियो का बोरिया बिस्तर बधना तय है |अलग नज़रिये से देखा जाए तो देश की बागड़ोर देश के नेताओ के हाथ में न हो कर देश की जनता के हाथ में होती है | वह अच्छे नेताओ का चुनाव कर देश को विकसित पटरी पर ला खड़ा कर सकती है |