तभी शायद ‘‘ऊँ‘‘ का भाव सार्थक हो सकेगा…..
“जीवन की पुकार’’(मन की बात)
कल का दिन देश के इतिहास में,नये भारत की राह में,विश्व गुरू/जगद्गुरू बनने की राह में एक महत्तवपूर्ण टर्निंग प्वाइंट,तीन तलाक के खिलाफ लोकसभा में विधेयक पारित होना,इस चीज को यदि हम धर्म विशेष(मुस्लिम धर्म) तक सीमित रखे तो सम्भवतः कुछ कमी रह जायेगी,व्यापक रुप से इस चीज को यदि हम जीवन धर्म तक ले जाएं तो सम्भवतः हमें व हमारे देश को वह स्थान मिल जायेगा,जिसकी हम कल्पना करते हैं। पंच महाभूत/पंच तत्वों में से प्रथम तत्व पृथ्वी जो धारण करती है जीवन को तथ्रत्रा जीवन के पुरुषार्थ/लक्ष्य जिसमें प्रथम चीज ,धर्म(धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष में से) इन दोनों प्रथम चीजों (धरती और धर्म) के विषय में हम सोच चुके हैं,मातृ शक्ति/नारी शक्ति को स्थायित्व मिले तो निश्चित ही धरती तत्व को भी स्थिरता मिलेगी,परिणाम स्वरुप जीवन में भी यह चीज लक्षित होगी। एक तरफ धर्म निरपेक्षता,जिस पर चल कर आज हम यहां तक पहुंच गये हैं न्यायालय भी यह कह चुका है कि हिंदुत्व जीवन जीने का तरीका है,पद्धति है, तो क्यों न हम हिन्दुत्व शब्द को ‘‘जीवनत्व‘‘ में परिवर्तित कर दें, और जीवन भी न केवल मनुष्यों का वरन, समस्त पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, वृक्ष-वनस्पति यहां तक कि समग्र जड उर्जा जिसमें धरती, वायुु, जल, अग्नि तथा आकाश सम्मिलित हों, तभी शायद ‘‘ऊँ‘‘ का भाव सार्थक हो सकेगा, इन सभी बातों को यदि ‘‘बूंद में सागर‘‘ की तहत कहें तो अभी तक हम धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन के पुरूषार्थ/ लक्ष्य मान कर आए हैं, क्यों न अब हम इन चीजों को जीनव की कलायें मान कर चलें, तो सम्भवतः जीवन की स्थिति कुछ और हो।
– विनोद कुमार ‘‘जीवन की पुकार”
क्लेमेंटाउन देहरादून