दून को देना चाहिए पर्यावरण संरक्षण पर जो़र : मैड
देहरादून के स्मार्ट सिटी परियोजना की दूसरी सूची में भी नाम न आने से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एम.डी.डी.ए.) को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। अंधाधुंध निर्माण एवं कांक्रीट के जंगल खड़े करने के बजाय देहरादून की अपनी अनोखी पहचान को दुरुस्त करने से इस परियोजना में ही नहीं, दून का वास्तविक भला हो सकता है। यह कहना है देहरादून के शिक्षित छात्रों के संगठन मेकिंग ए डिफ्रेंस बाए बीइंग द डीफ्रेंस (मैड) का। गौरतलब है कि मैड लंबे समय से एम.डी.डी.ए. से राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) द्वारा बनाई गई दून घाटी की रिपोर्ट को स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल करने के लिए आग्रह करता आ रहा था। जब एम.डी.डी.ए. के चाय बागान पर स्मार्ट सिटी बनाने की परियोजना को जन समर्थन नहीं मिला तब एम.डी.डी.ए. ने वह परियोजना तो छोड़ दी परंतु अपने नए आवेदन में भी पर्यावरण संरक्षण और बिंदाल-रिस्पना नदियों के पुनर्जीवन जैसे अनेक अनोखे बिंदुओं पर एम.डी.डी.ए. ने जोर नहीं दिया जिससे और शहरों के मुकाबले दून फिर पिछड़ गया। अपने पिचासी पन्नों के आवेदन में एम.डी.डी.ए. ने ‘जोन ४’ के रेट्रोफिटिंग की बात करी लेकिन तब भी जन आक्रोश के कारण चाय बागान का जो प्लैन छोड़ना पड़ा था, उसका भी जिक्र कर डाला। रेट्रोफिटिंग की परियोजना पर जोर देने के बजाय कुछ जगह तो काल्पनिक बातें की गईं और विज़न ढंग से सामने नहीं आ पाया।मैड के संस्थापक अध्यक्ष अभिजय नेगी ने कहा “इसलिए मैड ने एम.डी.डी.ए. से यह मांग की है कि वह पर्यावरण संरक्षण, बिंदाल-रिस्पना के पुनर्जीवन जैसे बिंदुओं पर जोर दे जिससे सतत विकास किया जा सके”। अपनी ओर से मैड एम.डी.डी.ए. को हर संभव मदद व सलाह देने को तत्पर है।