परमात्मा की बनाई हुई एक अनुपम कृति है सृष्टि : कुष्मिता भारती
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के सत्संग में प्रवचन करते हुए आशुतोष महाराज की शिष्या और देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी कुष्मिता भारती ने कहा कि यह सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई एक अनुपम कृति है, उस आनन्द स्वरूप परमात्मा ने इस सृष्टि को आनन्द स्वरूप ही निर्मित किया है। वह जगत नियन्ता अपनी बनाई हुई सृष्टि के कण-कण में निवास किया करता है। प्रत्येक शास्त्र ग्रन्थ उस परमात्मा की स्तुति करते हुए उसे सर्व समर्थ और सर्व अन्तर्यामी बताते हैं। उन्होंने कहा कि जब ईश्वर सब कुछ जानने वाले हंै तो फिर उनके समक्ष मांगना कैसा? उनके समक्ष इच्छा पूर्ति की बात करना कैसा? क्योंकि महापुरूष कहते हैं कि- आपका परमात्मा आपके मांगने से पहले ही जानता है कि आपको क्या चाहिए?। प्रश्न अब यह पैदा होता है कि आनन्द स्वरूप परमात्मा द्वारा रचित आनन्द स्वरूप सृष्टि का प्राणी आनन्दमय क्यों नहीं है? वह दुखी और अशान्त क्यों है? पीड़ाओं के मध्य जीवन व्यतीत करने पर मजबूर क्यों है? महापुरूष इन सब प्रश्नांे का तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए बताते हैं कि मनुष्य की सोच, मनुष्य के विचार ही इसके भीतर एकमात्र कारण हैं। अपने दोष पूर्ण और विकारी विचारों के कारण मानव आनन्द की प्राप्ति नहीं कर पा रहा है। मन के निकृष्ट विचार अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार मन की अशान्ति का कारण बने हुए हंै। अज्ञानता का गहरा पर्दा मनुष्य की आंखों पर कुछ इस तरह पड़ा हुआ है कि आनन्द स्वरूप का आनन्द उसके लिए एक दिवा स्वप्न की मांनिद होकर रह गया है। कहा जाता है कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि तात्पर्य मनुष्य की जैसी दृष्टि अर्थात जैसी सोच हुआ करती है वैसा ही यह संसार भी उसे दृष्टिगोचर हुआ करता है। महापुरूष जब-जब भी इस धराधाम पर अवतरित हुआ करते हैं तो वे केवल मनुष्य को समाधान ही दिया करते हैं। महापुरूषों के अनुसार दृष्टि से सृष्टि का अवलोकन तभी सुखद और आनन्दमय हो पाएगा जब चर्म चक्षुओं के बजाए मनुष्य ‘दिव्य दृष्टि’ का अनावरण करवा लेगा और इसी दिव्य दृष्टि से संसार के आनन्द स्वरूप को वह समझ भी पाएगा और इसका उपयोग भी कर पाएगा। दिव्य दृष्टि को अनावृत करवाने के लिए केवल पूर्ण गुरू की शरणागत् होना आवश्यक है। गुरू की कृपा से ही आनन्द स्वरूप परमात्मा के साथ-साथ उनकी आनन्द स्वरूप सृष्टि का आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की देहरादून स्थित निरंजनपुर शाखा में आज भी रविवारीय साप्ताहिक सत्संग-प्रवचनों तथा मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। साध्वी कुष्मिता भारती ने कहा कि भगवान जो भी करते हैं वे सदा अच्छा ही करते हैं। भगवान का प्रत्येक कार्य भक्त की भलाई के लिए ही हुआ करता है। साध्वी ने एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि एक राजा था और उसका एक मंत्री जो कि सदैव राजा के अंग-संग रहा करता था। एक बार अपनी तलवार की धार परखते हुए राजा की एक अंगुली कट गई, राजा दर्द से कराह उठा, उसने मंत्री की ओर देखा तो मंत्री, जो कि ईश्वर का अनन्य उपासक था, बोला कि महाराज भगवान जो भी करते हैं, अच्छा ही करते हैं। राजा क्रोध से आपा खो बैठा कि एक तो मेरी अंगुली कट गई और यह मंत्री कहता है कि भगवान ने अच्छा ही किया। राजा ने अपने सिपाहियों को बुलवा कर मंत्री को कैद खाने में डलवा दिया। कुछ समय बीता राजा अपने सैन्य दल के साथ शिकार खेलने जंगल में गया और चलते-चलते वह अपने सिपाहियों से बिछड़ कर गहन जंगल में भटक गया। जंगल में आदिवासी जंगली कबीले वालों द्वारा राजा को पकड़कर बलि चढ़ाने हेतु वध स्थल पर ले जाया गया जहां पर उनके कबीले के मुखिया ने राजा के शरीर को लेप लगाते हुए पाया कि उसकी तो एक अंगुली कटी हुई है, इस पर मुखिया ने घोषणा की कि यह व्यक्ति को अंग-भंग है अतः बलि के काबिल नहीं है। उन्होंने राजा को मुक्त कर दिया। राजा अपने राजमहल आकर सबसे पहले कारागार में बंद अपने मंत्री के पास गया और बोला, तुम सही थे, मेरे लिए तो ईश्वर ने अच्छा किया परन्तु तुम्हारे लिए क्या अच्छा हुआ? इस पर मंत्री बोला, महाराज मैं सदैव आपके साथ रहा करता था इसलिए अंगुली कटी होने के कारण आप तो आज बच जाते किन्तु मैं अवश्य बलि चढ़ा दिया जाता क्योंकि मेरा शरीर तो पूरा है और बलि चढ़ाए जाने के लायक है, अतः भगवान ने मुझे पहले ही कैद खाने में डलवा दिया। इस दृष्टांत के माध्यम से साध्वी जी ने कहा कि जिन्हंे परमात्मा में अगाध श्रद्धा है, पूर्ण विश्वास है उन्हें पल-प्रतिपल प्रतीत हुआ करता है कि ईश्वर जो करते हैं वह शुभ ही करते हैं। भजनों की मनोहारी पुष्प वर्षा करते हुए संस्थान के संगीतज्ञों द्वारा अनेक सुन्दरतम् भजनों का गायन करते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। ‘‘करते पुकार, करे बार-बार, सुन लो प्रार्थना…….’’, ‘‘जीना मुर्शिद सिखाए जाता है……’’, ‘‘मेरा दिल तो दिवाना हो गया आशु बाबा तेरा……’’ तथा ‘‘सद्गुरू के चरणों में हर श्वांस गुज़र जाए…..’’ इत्यादि भजनों में संगत भाव विभोर होती चली गई।