पहचान : रिक्शेवाले ने बेटे को बनाया था आईएएस….
सूखी रोटी खाकर कटती थीं रातें
वाराणसी | चार साल पूर्व एक रिक्शेवाले ने लंबे संघर्ष के बाद अपने बेटे को आईएएस बना पाने में सफलता हासिल की थी । आज भी यह रिक्शेवाला सभी के लिए प्रेरणास्रोत है , उनके परिवार में गरीबी का आलम ऐसा था कि दोनों सूखी रोटी खाकर रातें काटते थे। बेटा 2007 बैच के आईएएस अफसर है। काशी में रिक्शा चलाने नारायण जायसवाल ने लंबे संघर्ष के बाद अपने बेटे को आईएएस बनाया था। यही नहीं, उनके बेटे की शादी एक आईपीएस अफसर से हुई है। बेटा-बहू गोवा में पोस्टेड हैं। नारायण बताते हैं, ”मेरी 3 बेटियां (निर्मला, ममता, गीता) और एक बेटा है। अलईपुरा में हम किराए के मकान में रहते थे। मेरे पास 35 रिक्शे थे, जिन्हें किराए पर चलवाता था। सब ठीक चल रहा था। इसी बीच पत्नी इंदु को ब्रेन हेमरेज हो गया, जिसके इलाज में काफी पैसे खर्च हो गए। 20 से ज्यादा रिक्शे बेचने पड़े, लेकिन वो नहीं बची। तब गोविंद 7th में था। “गरीबी का आलम ऐसा था कि मेरे परिवार को दोनों टाइम सूखी रोटी खाकर रातें काटना पड़ती थी। मैं खुद गोविंद को रिक्शे पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाता था। हमें देखकर स्कूल के बच्चे मेरे बेटे को ताने देते थे- आ गया रिक्शेवाले का बेटा। मैं जब लोगों को बताता कि मैं अपने बेटे को आईएएस बनाऊंगा तो सब हमारा मजाक बनाते थे।” “बेटियों की शादी करने के लिए बचे हुए रिक्शे भी बिक गए। सिर्फ एक बचा, जिसे चलाकर मैं घर को चला रहा था। पैसे नहीं होते थे, तो गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था।” गोविंद जायसवाल 2007 बैच के आईएएस अफसर हैं। वे इस समय गोवा में सेक्रेट्री फोर्ट, सेक्रेट्री स्किल डेवलपमेंट और इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जैसे 3 पदों पर तैनात हैं। वे हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन के बाद 2006 में सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए थे। वहां उन्होंने पार्ट-टाइम जॉब्स कर अपनी ट्यूशन्स का खर्च निकाला। उनकी मेहनत रंग लाई और फर्स्ट अटैम्प्ट में ही वे 48वीं रैंक के साथ आईएएस बन गए। गोविंद की बड़ी बहन ममता बताती हैं, ”भाई बचपन से ही पढ़ने में तेज था। मां के देहांत के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। उसके दिल्ली जाने के बाद पिताजी बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्च भेज पाते थे। घर की हालत देख भाई ने चाय और एक टाइम का टिफिन भी बंद कर दिया था।”