पहाड़ के गांव दंश झेल रहे पलायन का
देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में लोगों का पलायन तेजी से हो रहा है, जिस कारण कई गांव जनविहीन होने के कगार पर पहुंच गए हैं। सरकार के अभी तक के प्रयासों से पलायन नहीं रूक पाया है। पलायन के कारण एक के बाद एक गांव खाली होते जा रहे हैं। गांव खाली होने से घर खंडहर में तब्दील हो रहे हैं। पलायन की सबसे अधिक मार पौड़ी जिला झेल रहा है। पौड़ी जिले में भी कई गांव ऐसे हैं जो 90 प्रतिशत खाली हो चुके हैं। पौड़ी जिले के कल्जीखाल, कोट, द्वारीखाल, जयहरीखाल, जैसे ब्लॉकों के चार दर्जन से अधिक गांवों में 90 ēतिशत से भी अधिक लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं। इनमें कई गांव ऐसे हैं जहां पर एक या दो परिवार ही बचे हैं। उत्तराखंड राज्य का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि राज्य के गांवों का विकास होगा, लोगों को गांव में ही रोजगार मिल सकेगा और पलायन रूकेगा लेकिन राज्य बनने के बाद पलायन रूकने के बजाए और बढ़ गया है। उत्तराखंड के गांवों के विकास के लिए कोई ईमानदार पहल नहीं हुईं। गांवों में पानी, स्वास्थ्य, ईंधन, बिजली, सड़क, संचार, शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। पेयजल किल्लत के चलते कई गांवों में लोगों को आज भी आधा से दो किमी दूर से पानी ढोना पड़ता है। पेयजल समस्या के कारण लोग पशुओं को बेच रहे हैं, जिस कारण पहाड़ के गांवों में दुग्ध उत्पादन सिमटता जा रहा है। अधिकांश गांवों में अभी भी ईंधन का जरिया लकड़ी है, लोग लकड़ी जलाकर भोजन बनाते हैं। वन विभाग की सख्ती के चलते ग्रामीणजनों को वनों से लकड़ी भी नहीं मिल पा रही है, जिस कारण लोगों के लिए खाना बनाना मुश्किल होता जा रहा है। पहाड़ों में सिंचाई के एकमात्र साधन गाड-गदेरे सूख गए हैं या सूखने के कगार पर हैं। सिंचाई साधनों के अभाव में लोग खेती-बाड़ी छोड़ने को मजबूर हैं, जिस कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। पहाड़ के कई गांवों का अभी विद्युतीकरण नहीं हो पाया है, जिस कारण लोगों को जिंदगी अंधेरे में काटनी पड़ती है। पहाड़ के 80 प्रतिशत गांव सड़क सुविधा से नहीं जुड़ पाए हैं, जिस कारण लोगों को कई किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। जिन गांवों के लिए सड़कें स्वीकृत हुई भी हैं उनमें से कई गांवों में वन भूमि आड़े आने से सड़कों का निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ है। ज्यादातर गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। मरीज को इलाज के लिए कुर्सी या चारपाई पर कई किमी की पैदल दूरी तय कर अस्पताल ले जाना पड़ता है। समय पर स्वास्थ्य सुविधा न मिलने से कई बार मरीज की रास्ते में ही मौत हो जाती है। ग्रामीण इलाकों में जो अस्पताल हैं भी उनमें चिकित्सकों का टोटा बना हुआ है। स्कूल हैं तो उनमें शिक्षकों की कमी बनी हुई है, जिस कारण बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा नहीं मिल पा रही है। सुख सुविधाओं के अभाव में पहाड़ के गांवों से लोग तेजी से पलायन कर रहे हैं, जिस कारण गांव खाली हो रहे हैं। गांवों में रोजगार के साधनों का अभाव बना हुआ है, पहाड़ के युवा रोजगार की तलाश में तेजी से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। पलायन के कारण कई गांवों में केवल बजुर्ग लोग ही रह गए हैं। जिन खेतों में कभी फसल लहलाती थी वह बंजर हो गए हैं। युवाओं के पलायन के कारण ज्यादातर घर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। सरकार गांवों के विकास की न कोई नीति बना पाई है और नहीं पलायन को रोकने के प्रति गंभीर है।