पिता ने जिस बेटी को अभिशाप माना उसे माँ ने आईएएस बनाया
जब चाहत हो जज्बा अपने आप आ ही जाता है | ऐसे ही एक कारनामा हुआ है कानपुर के विराट नगर में | एक लड़का होने के बावजूद दूसरे बेटे की चाहत में एक के बाद एक तीन बेटियां, पति के ताने-झगड़े झेल रही गीता को अचानक एक दिन ये एहसास हुआ, ”मैं ये सब क्यों बर्दाश्त कर रही हूँ, बेटियों की वजह से? मैं नहीं पढ़ी लेकिन इनको पढ़ाऊंगी, ये मेरी कमज़ोरी नहीं ताकत बनेंगी।” मेहनत रंग लाई, गीता देवी यादव (49 वर्ष) की सबसे बड़ी बेटी पूजा आईएएस बन गई है।जुलाई मेें जब देश के सबसे बड़े प्रशासनिक पद आईएएस की परीक्षाओं का नतीजा आया, तो पूजा अग्निहोत्री (24 वर्ष) यह परीक्षा पास कर चुकी थी। वर्तमान में गाजि़याबाद में अपने पति के साथ रह रही पूजा ने कानपुर में रह रही अपनी माँ को फोन करके बताया तो गीता के मन में संतुष्टि का भाव आया, ”मेरा सारा संघर्ष, सारी मेहनत सफल हो गई”।पूजा के आईएएस बनने में उसकी अपनी मेहनत तो कारण है ही लेकिन माँ गीता का योगदान सफलता की प्राथमिक नींव बना। मतभेदों के चलते पति से बनती नहीं थी, गीता ने गैर सरकारी संगठन से जुड़कर गाँव-गाँव जाकर परिवार नियोजन की जागरूकता फैलाने का काम करके, रज़ाई सिलना, चारपाई बांधने जैसे काम करके मिले पैसों से अपने बच्चों का पालन-पोषण किया और उन्हें शिक्षा दिलवाई। ”बेटे के बाद तीन साल के अंतर पर बेटी हुई, फिर तीन साल के अंतर बाद दूसरी बेटी हो गई। आखिरी बेटी के समय सबको आशा थी कि बेटा होगा, लेकिन वो भी जब बेटी ही हुई तो मुझे एक हफ्ते तक खाना भी नहीं दिया गया।” गीता आगे बताती हैं, ”इसके बाद कई वर्षों तक पति के साथ लड़ाई-झगड़ा चलता रहा। पति रोडवेज़ में ड्राइवरी करते हैं वो तीन दिन में आते थे, सोते रहते, उनसे घर गृहस्थी से कोई मतलब नहीं रहा”।अभी मैं रिजर्व कैंडिडेट लिस्ट में हूं। अभी रिजर्व लिस्ट वालों के लिए ट्रेनिंग शेड्यूल प्लान नहीं किया गया है। अभी हम ट्रेनिंग शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। जहां तक रही बात मां की तो मां मेरा आदर्श हैं। उन्होंने न सिर्फ एक अच्छी दोस्त और अच्छी टीचर का रोल निभाया बल्कि पिता के भी कर्तव्य निभाए। मेरे हर फैसले और रिश्तों में उन्होंने मेरा साथ दिया। जब भी मैं कमजोर या उदास महसूस करती थी मेरी मां ही मेरा सहारा बनती थीं।